शनिवार, 6 जून 2020

श्रीमद्भागवतमहापुराण दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) – तेरहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) तेरहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

ब्रह्माजी का मोह और उसका नाश

तथेति पाययित्वार्भा वत्सानारुध्य शाद्वले ।
मुक्त्वा शिक्यानि बुभुजुः समं भगवता मुदा ॥ ७ ॥
कृष्णस्य विष्वक् पुरुराजिमण्डलैः
अभ्याननाः फुल्लदृशो व्रजार्भकाः ।
सहोपविष्टा विपिने विरेजुः
छदा यथाम्भोरुहकर्णिकायाः ॥ ८ ॥
केचित् पुष्पैर्दलैः केचित् पल्लवैः अङ्‌कुरैः फलैः ।
शिग्भिः त्वग्भिः दृषद्‌भिश्च बुभुजुः कृतभाजनाः ॥ ९ ॥
सर्वे मिथो दर्शयन्तः स्वस्वभोज्यरुचिं पृथक् ।
हसन्तो हासयन्तश्च अभ्यवजह्रुः सहेश्वराः ॥ १० ॥
बिभ्रद् वेणुं जठरपटयोः श्रृङ्‌गवेत्रे च कक्षे ।
वामे पाणौ मसृणकवलं तत्फलान्यङ्‌गुलीषु ।
तिष्ठन् मध्ये स्वपरिसुहृदो हासयन् नर्मभिः स्वैः
स्वर्गे लोके मिषति बुभुजे यज्ञभुग् बालकेलिः ॥ ११ ॥

ग्वालबालों ने एक स्वरसे कहा—‘ठीक है, ठीक है !उन्होंने बछड़ों को पानी पिलाकर हरी-हरी घास में छोड़ दिया और अपने-अपने छीके खोल-खोलकर भगवान्‌के साथ बड़े आनन्दसे भोजन करने लगे ॥ ७ ॥ सबके बीच में भगवान्‌ श्रीकृष्ण बैठ गये । उनके चारों ओर ग्वालबालों ने बहुत-सी मण्डलाकार पंक्तियाँ बना लीं और एक-से-एक सटकर बैठ गये । सबके मुँह श्रीकृष्ण की ओर थे और सबकी आँखें आनन्दसे खिल रही थीं । वन-भोजनके समय श्रीकृष्ण के साथ बैठे हुए ग्वालबाल ऐसे शोभायमान हो रहे थे, मानो कमलकी कर्णिका के चारों ओर उसकी छोटी-बड़ी पँखुडिय़ाँ सुशोभित हो रही हों ॥ ८ ॥ कोई पुष्प तो कोई पत्ते और कोई-कोई पल्लव, अंकुर, फल, छीके, छाल एवं पत्थरोंके पात्र बनाकर भोजन करने लगे ॥ ९ ॥ भगवान्‌ श्रीकृष्ण और ग्वालबाल सभी परस्पर अपनी-अपनी भिन्न-भिन्न रुचिका प्रदर्शन करते । कोई किसीको हँसा देता, तो कोई स्वयं ही हँसते-हँसते लोट-पोट हो जाता । इस प्रकार वे सब भोजन करने लगे ॥ १० ॥ (उस समय श्रीकृष्णकी छटा सबसे निराली थी ।) उन्होंने मुरलीको तो कमरकी फेंटमें आगेकी ओर खोंस लिया था । सिंगी और बेंत बगलमें दबा लिये थे । बायें हाथमें बड़ा ही मधुर घृतमिश्रित दही- भातका ग्रास था और अँगुलियोंमें अदरक, नीबू आदिके अचार-मुरब्बे दबा रखे थे । ग्वालबाल उनको चारों ओरसे घेरकर बैठे हुए थे और वे स्वयं सबके बीचमें बैठकर अपनी विनोदभरी बातोंसे अपने साथी ग्वालबालोंको हँसाते जा रहे थे । जो समस्त यज्ञोंके एकमात्र भोक्ता हैं, वे ही भगवान्‌ ग्वालबालोंके साथ बैठकर इस प्रकार बाल-लीला करते हुए भोजन कर रहे थे और स्वर्गके देवता आश्चर्यचकित होकर यह अद्भुत लीला देख रहे थे ॥ ११ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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