॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
दशम
स्कन्ध (पूर्वार्ध) – पचीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)
गोवर्धनधारण
तं
प्रेमवेगान् निभृता व्रजौकसो
यथा
समीयुः परिरम्भणादिभिः ।
गोप्यश्च
सस्नेहमपूजयन् मुदा
दध्यक्षताद्भिर्युयुजुः
सदाशिषः ॥ २९ ॥
यशोदा
रोहिणी नन्दो रामश्च बलिनां वरः ।
कृष्णमालिङ्ग्य
युयुजुः आशिषः स्नेहकातराः ॥ ३० ॥
दिवि
देवगणाः सिद्धाः साध्या गन्धर्वचारणाः ।
तुष्टुवुर्मुमुचुस्तुष्टाः
पुष्पवर्षाणि पार्थिव ॥ ३१ ॥
शङ्खदुन्दुभयो
नेदुर्दिवि देवप्रचोदिताः ।
जगुर्गन्धर्वपतयः
तुंबुरुप्रमुखा नृप ॥ ३२ ॥
ततोऽनुरक्तैः
पशुपैः परिश्रितो
राजन्
स्वगोष्ठं सबलोऽव्रजद्धरिः ।
तथाविधान्यस्य
कृतानि गोपिका
गायन्त्य
ईयुर्मुदिता हृदिस्पृशः ॥ ३३ ॥
व्रजवासियों
का हृदय प्रेम के आवेग से भर रहा था। पर्वत को रखते ही वे भगवान् श्रीकृष्ण के
पास दौड़ आये। कोई उन्हें हृदय से लगाने और कोई चूमने लगा। सबने उनका सत्कार किया।
बड़ी-बूढ़ी गोपियों ने बड़े आनन्द और स्नेहसे दही, चावल,
जल आदि से उनका मङ्गल-तिलक किया और उन्मुक्त हृदयसे शुभ आशीर्वाद
दिये ॥ २९ ॥ यशोदारानी, रोहिणीजी, नन्दबाबा
और बलवानोंमें श्रेष्ठ बलरामजीने स्नेहातुर होकर श्रीकृष्णको हृदयसे लगा लिया तथा
आशीर्वाद दिये ॥ ३० ॥ परीक्षित् ! उस समय आकाशमें स्थित देवता, साध्य, सिद्ध, गन्धर्व और चारण
आदि प्रसन्न होकर भगवान् की स्तुति करते हुए उनपर फूलोंकी वर्षा करने लगे ॥ ३१ ॥
राजन् ! स्वर्गमें देवतालोग शङ्ख और नौबत बजाने लगे। तुम्बुरु आदि गन्धर्वराज
भगवान् की मधुर लीला का गान करने लगे ॥ ३२ ॥ इसके बाद भगवान् श्रीकृष्ण ने व्रज की
यात्रा की। उनके बगल में बलराम जी चल रहे थे और उनके प्रेमी ग्वालबाल उनकी सेवा कर
रहे थे । उनके साथ ही प्रेममयी गोपियाँ भी अपने हृदय को आकर्षित करनेवाले, उसमें प्रेम जगाने वाले भगवान् की गोवर्धनधारण आदि लीलाओंका गान करती हुई
बड़े आनन्दसे व्रजमें लौट आयीं ॥ ३३ ॥
इति
श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां
संहितायां
दशमस्कन्धे पूर्वार्धे पञ्चविंशोऽध्यायः ॥ २५ ॥
हरिः
ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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