मंगलवार, 22 अगस्त 2023

जय श्री कृष्ण



मेरे लिये तो जहाँ तुम हो, वहीं काशी है, वहीं द्वारका है ।  वहीं मक्का है और वहीं जेरूसलेम है ।  मुझे ऐसे ही तरण-तारण तीर्थों में ले चलो, मेरे नाथ ! 

 जहाँ भी तुम्हारे प्रेम-रस की विमल धारा बहती हो, वहीं गङ्गा है, वहीं जमुना है और वहीं आबे ज़मज़म है ।  मुझे ऐसी ही सरस सरिताओं की लहरों पर धीरे-धीरे झुलाते रहो, मेरे हृदय-रमण !

 जहाँ कहीं भी तुम्हारी प्यारी झलक देखने को मिलती हो, मेरी नज़र में, वहीं मन्दिर है, वहीं मसज़िद है और वहीं गिरिजा है ।  मेरा आसन किसी ऐसे उपासना-स्थल में जमा दो, मेरे स्वामी !

(श्रीवियोगी हरिजी)
………..००४.०६.पौष कृष्ण ११ सं० १९८६वि०-कल्याण (पृ०८३८)


4 टिप्‍पणियां:

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - आठवां अध्याय..(पोस्ट०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  चतुर्थ स्कन्ध – आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०१) ध्रुवका वन-गमन मैत्रेय उवाच - सनकाद्या नारदश्च ऋभुर्...