गुरुवार, 21 मार्च 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध - आठवां अध्याय..(पोस्ट..१२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ 

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध--आठवाँ अध्याय..(पोस्ट १२)

गर्भमें परीक्षित्‌की रक्षा, कुन्तीके द्वारा भगवान्‌की स्तुति और युधिष्ठिरका शोक

त्वयि मेऽनन्यविषया मतिर्मधुपतेऽसकृत् ।
रतिं उद्वहतात् अद्धा गङ्गेवौघं उदन्वति ॥ ४२ ॥
श्रीकृष्ण कृष्णसख वृष्णि ऋषभावनिध्रुग्
     राजन्यवंशदहन अनपवर्ग वीर्य ।
गोविन्द गोद्विजसुरार्तिहरावतार
     योगेश्वराखिलगुरो भगवन् नमस्ते ॥ ४३ ॥

श्रीकृष्ण ! जैसे गङ्गा की अखण्ड धारा समुद्रमें गिरती रहती है, वैसे ही मेरी बुद्धि किसी दूसरी ओर न जाकर आपसे ही निरन्तर प्रेम करती रहे ॥ ४२ ॥ श्रीकृष्ण ! अर्जुनके प्यारे सखा यदुवंशशिरोमणे ! आप पृथ्वीके भाररूप राजवेशधारी दैत्योंको जलानेके लिये अग्निस्वरूप हैं। आपकी शक्ति अनन्त है। गोविन्द ! आपका यह अवतार गौ, ब्राह्मण और देवताओंका दु:ख मिटानेके लिये ही है। योगेश्वर ! चराचरके गुरु भगवन् ! मैं आपको नमस्कार करती हूँ ॥ ४३ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. हे नाथ हे मेरे गोविंद हे नारायण
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव
    🌹💟🥀जय श्री हरि:🙏🙏

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