शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गोलोकखण्ड) बारहवाँ अध्याय (पोस्ट 04)

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गोलोकखण्ड)

बारहवाँ अध्याय (पोस्ट 04)

 

श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की धूम; गोप-गोपियों का उपायन लेकर आना; नन्द और यशोदा-रोहिणीद्वारा सबका यथावत् सत्कार; ब्रह्मादि देवताओंका भी श्रीकृष्णदर्शनके लिये आगमन

 

वन्दिभ्यो मागधेभ्यश्च सर्वेभ्यो बहुलं धनम् ।
ववर्ष घनवद्‌गोपो नंदराजो व्रजेश्वरः ॥३८॥
निधिः सिद्धिश्च वृद्धिश्च भुक्तिर्मुक्तिर्गृहे गृहे ।
वीथ्यां वीथ्यां लुठन्तीव तदिच्छा कस्यचिन्न हि ॥३९॥
सनत्कुमारः कपिलः शुकव्यासादिभिः सह ।
हंसदत्तपुलस्त्याद्यैर्मया ब्रह्मा जगाम ह ॥४०॥
हंसारूढो हेमवर्णो मुकुटी कुण्डली स्फुरन् ।
चतुर्मुखो वेदकर्ता द्योतयन्मंडलं दिशाम् ॥४१॥
तथा तमनु भुताढ्यो वृषारूढो महेश्वरः ।
रथारूढो रविः साक्षात्‌गजारूढः पुरंदरः ॥४२॥
वायुश्च खंजनारूढो यमो महिषवाहनः ।
धनदः पुष्पकारूढो मृगारूढः क्षपेश्वरः ॥४३॥
अजारूढो वीतिहोत्रो वरुणो मकरस्थितः ।
मयूरस्थः कार्तिकेयो भारती हंसवाहिनी ॥४४॥
लक्ष्मी च गरुडारूढा दुर्गाख्या सिंहवाहिनी ।
गोरूपधारिणी पृथ्वी विमानस्था समाययौ ॥४५॥
दोलारूढा दिव्यवर्णा मुख्याः षोडशमातृकाः ।
षष्ठी च शिबिकारूढा खड्‌गिनी यष्टिधारिणी ॥४६॥
मंगलो वानरारूढो भासारूढो बुधः स्मृतः ।
गीष्पतिः कृष्णसारस्थः शुक्रो गवयवाहनः ॥४७॥
शनिश्च मकरारूढ उष्ट्रस्थः सिंहिकासुतः ।
कोटिबालार्कसंकाश आययौ नन्दमन्दिरम् ॥४८॥
कोलाहलसमायुक्तं गोपगोपीगणाकुलम् ।
नन्दमन्दिरमभ्येत्य क्षणं स्थित्वा ययुः सुराः ॥४९॥
परिपूर्णतमं साक्षाच्छ्रीकृष्णं बालरूपिणम् ।
नत्वा दृष्ट्वा तदा देवाश्चक्रुस्तस्य स्तुतिं पराम् ॥५०॥
वीक्ष्य कृष्णं तदा देवा ब्रह्माद्या ऋषिभिः सह ।
स्वधामानि ययुः सर्वे हर्षिताः प्रेमविह्वलाः ॥५१॥

समस्त बंदियों तथा मागधजनों को धनी गोप व्रजेश्वर नन्दरायने बहुत धन दिया । धनराशिकी वर्षा कर दी । व्रजकी गली-गलीमें, घर- घरमें निधि, सिद्धि, वृद्धि, भुक्ति और मुक्ति — ये लोटती-सी दिखायी देती थीं। उन्हें पानेकी इच्छा वहाँ किसीके भी मनमें नहीं होती थी ॥ ३८–३९ ॥

उस समय सनत्कुमार, कपिल, शुक और व्यास आदिको तथा हंस, दत्तात्रेय, पुलस्त्य और मुझ (नारद) को साथ ले ब्रह्माजी वहाँ गये । ब्रह्माजीका वर्ण तप्त सुवर्णके समान था। उनके मस्तकोंपर मुकुट तथा कानोंमें कुण्डल जगमगा रहे थे। वे वेदकर्ता चतुर्मुख ब्रह्मा हंसपर आरूढ़ हो सम्पूर्ण दिङ्मण्डलको देदीप्यमान करते हुए वहाँ आये थे ।। ४०-४१ ॥   

उनके पीछे भूतों से घिरे हुए वृषभारूढ़ महेश्वर पधारे। फिर रथपर चढ़े हुए साक्षात् सूर्य, ऐरावत हाथीपर सवार देवराज इन्द्र, खञ्जरीटपर चढ़े हुए वायुदेव, महिषवाहन यम, पुष्पकारूढ़ कुबेर, मृगवाहन चन्द्रमा, बकरेपर बैठे हुए अग्निदेव, मगरपर आरूढ़ वरुण, मयूरवाहन कार्तिकेय, हंसवाहिनी सरस्वती, गरुडारूढ़ लक्ष्मी, सिंहवाहिनी दुर्गा तथा गोरूपधारिणी पृथ्वी, जो विमानपर बैठी थीं, ये सब वहाँ आये ।। ४२-४५ ॥   

दिव्यकान्तिवाली मुख्य-मुख्य सोलह मातृकाएँ पालकीपर बैठकर आयी थीं । खड्ग, चक्र तथा यष्टि धारण करनेवाली षष्ठीदेवी शिबिकापर सवार हो वहाँ पहुँची थीं । मङ्गल देवता वानरपर और बुध देवता भास नामक पक्षीपर चढ़कर वहाँ पधारे थे। काले मृगपर बैठे बृहस्पति, गवयपर चढ़े शुक्राचार्य, मगर पर आरूढ़ शनि देव और ऊँट पर आरूढ़ सिंहिकाकुमार राहु — ये सभी ग्रह, जो करोड़ों बाल सूर्यो के समान तेजस्वी थे, नन्दमन्दिर में पधारे ।। ४६-४९ ॥   

वह नन्दभवन झुंड के झुंड गोपों और गोपियोंसे भरा हुआ था। देवतालोग वहाँ पहुँचकर क्षणभर रुके और फिर चले गये । बालरूपधारी परिपूर्णतम परमात्मा साक्षात् भगवान् श्रीकृष्णको देखकर, उन्हें मस्तक नवाकर, देवताओंने उस समय उनका उत्तम स्तवन किया। ब्रह्मा आदि सब देवता ऋषियोंसहित वहाँ श्रीकृष्णका दर्शन करके प्रेमविह्वल और हर्षविभोर होकर अपने-अपने धाम को चले गये । ४० - ५१ ॥

 

इस प्रकार श्रीगर्गसंहितामें गोलोकखण्डके अन्तर्गत नारद- बहुलाश्व-संवादमें 'श्रीकृष्णदर्शनार्थ ब्रह्मादि देवताओंका आगमन' नामक बारहवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १२ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से 

 



1 टिप्पणी:

  1. 🌺🍂🥀🌺जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव

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