॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम स्कन्ध- अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०३)
राजा परीक्षत् को शृङ्गी ऋषिका शाप
को नाम तृप्येद् रसवित्कथायां
महत्तमैकान्त परायणस्य ।
नान्तं गुणानां अगुणस्य जग्मुः
योगेश्वरा ये भवपाद्ममुख्याः ॥ १४ ॥
तन्नो भवान् वै भगवत्प्रधानो
महत्तमैकान्त परायणस्य ।
हरेरुदारं चरितं विशुद्धं
शुश्रूषतां नो वितनोतु विद्वन् ॥ १५ ॥
स वै महाभागवतः परीक्षिद्
येनापवर्गाख्यमदभ्रबुद्धिः ।
ज्ञानेन वैयासकिशब्दितेन
भेजे खगेन्द्रध्वजपादमूलम् ॥ १६ ॥
तन्नः परं पुण्यमसंवृतार्थं
आख्यानमत्यद्भुत योगनिष्ठम् ।
आख्याह्यनन्ता चरितोपपन्नं
पारीक्षितं भागवताभिरामम् ॥ १७ ॥
ऐसा कौन रस-मर्मज्ञ होगा, जो महापुरुषोंके एकमात्र जीवन-सर्वस्व श्रीकृष्णकी लीला-कथाओंसे तृप्त हो जाय ? समस्त प्राकृत गुणोंसे अतीत भगवान् के अचिन्त्य अनन्त कल्याणमय गुणगणोंका पार तो ब्रह्मा, शङ्कर आदि बड़े-बड़े योगेश्वर भी नहीं पा सके ॥ १४ ॥ विद्वन् ! आप भगवान् को ही अपने जीवनका ध्रुवतारा मानते हैं। इसलिये आप सत्पुरुषोंके एकमात्र आश्रय भगवान् के उदार और विशुद्ध चरित्रोंका हम श्रद्धालु श्रोताओंके लिये विस्तारसे वर्णन कीजिये ॥ १५ ॥ भगवान् के परम प्रेमी महाबुद्धि परीक्षित् ने श्रीशुकदेवजीके उपदेश किये हुए जिस ज्ञानसे मोक्षस्वरूप भगवान् के चरणकमलोंको प्राप्त किया, आप कृपा करके उसी ज्ञान और परीक्षित् के परम पवित्र उपाख्यानका वर्णन कीजिये; क्योंकि उसमें कोई बात छिपाकर नहीं कही गयी होगी और भगवत्प्रेम की अद्भुत योगनिष्ठाका निरूपण किया गया होगा। उसमें पद-पदपर भगवान् श्रीकृष्णकी लीलाओंका वर्णन हुआ होगा। भगवान् के प्यारे भक्तोंको वैसा प्रसङ्ग सुननेमें बड़ा रस मिलता है ॥१६-१७॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्ट संस्करण) पुस्तक कोड 1535 से
🌺💖🌹🥀जय श्री हरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
हे गोविंद हे गोपाल हे करुणामय दीन दयाल जय जय प्रभु दीन दयाल हरे 🙏🌾🙏🌾🙏