॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय स्कन्ध-दूसरा अध्याय..(पोस्ट०४)
भगवान् के स्थूल और सूक्ष्म रूपों की धारणा तथा क्रममुक्ति और सद्योमुक्ति का वर्णन
अदीनलीलाहसितेक्षणोल्लसद्
भ्रूभङ्गसंसूचितभूर्यनुग्रहम् ।
ईक्षेत चिन्तामयमेनमीश्वरं
यावन्मनो धारणयाऽवतिष्ठते ॥ १२ ॥
एकैकशोऽङ्गानि धियानुभावयेत्
पादादि यावद् हसितं गदाभृतः ।
जितं जितं स्थानमपोह्य धारयेत्
परं परं शुद्ध्यति धीर्यथा यथा ॥ १३ ॥
यावन्न जायेत परावरेऽस्मिन्
विश्वेश्वरे द्रष्टरि भक्तियोगः ।
तावत् स्थवीयः पुरुषस्य रूपं
क्रियावसाने प्रयतः स्मरेत ॥ १४ ॥
लीलापूर्ण उन्मुक्त हास्य और चितवनसे शोभायमान भौंहोंके द्वारा वे भक्तजनों पर अनन्त अनुग्रह की वर्षा कर रहे हैं। जबतक मन इस धारणा के द्वारा स्थिर न हो जाय, तब तक बार-बार इन चिन्तनस्वरूप भगवान् को देखते रहने की चेष्टा करनी चाहिये ॥ १२ ॥
भगवान् के चरण-कमलों से लेकर उनके मुसकानयुक्त मुख-कमलपर्यन्त समस्त अङ्गों की एक-एक करके बुद्धिके द्वारा धारणा करनी चाहिये। जैसे-जैसे बुद्धि शुद्ध होती जायगी, वैसे-वैसे चित्त स्थिर होता जायगा। जब एक अङ्गका ध्यान ठीक-ठीक होने लगे, तब उसे छोडक़र दूसरे अङ्गका ध्यान करना चाहिये ॥ १३ ॥ ये विश्वेश्वर भगवान् दृश्य नहीं, द्रष्टा हैं। सगुण, निर्गुण—सब कुछ इन्हींका स्वरूप है। जबतक इनमें अनन्य प्रेममय भक्तियोग न हो जाय, तबतक साधकको नित्य-नैमित्तिक कर्मोंके बाद एकाग्रतासे भगवान् के उपर्युक्त स्थूल रूपका ही चिन्तन करना चाहिये ॥१४ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
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जवाब देंहटाएंहे निर्गुण निराकार हे सगुण साकार विश्वेश्वर सर्वेश्वर जगतपति हे नाथ आपका हर क्षण सहस्त्रों सहस्त्रों सहस्त्रों कोटिश:चरण वंदन 🪷🌿🪷🙏🙏🙏
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव
नारायण नारायण नारायण नारायण
Om namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏🌹🌹🌹
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