॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय स्कन्ध- सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)
भगवान् के लीलावतारों की कथा
ब्रह्मोवाच ।
यत्रोद्यतः क्षितितलोद्धरणाय बिभ्रत् ।
क्रौडीं तनुं सकलयज्ञमयीमनन्तः ।
अन्तर्महार्णव उपागतमादिदैत्यं ।
तं दंष्ट्रयाऽद्रिमिव वज्रधरो ददार ॥ १ ॥
जातो रुचेरजनयत् सुयमान् सुयज्ञ ।
आकूतिसूनुः अमरान् अथ दक्षिणायाम् ।
लोकत्रयस्य महतीं अहरद् यदार्तिं ।
स्वायम्भुवेन मनुना हरिरित्यनूक्तः ॥ २ ॥
जज्ञे च कर्दमगृहे द्विज देवहूत्यां ।
स्त्रीभिः समं नवभिरात्मगतिं स्वमात्रे ।
ऊचे ययाऽत्मशमलं गुणसङ्गपङ्कम् ।
अस्मिन् विधूय कपिलस्य गतिं प्रपेदे ॥ ३ ॥
ब्रह्माजी कहते हैं—अनन्त भगवान् ने प्रलय के जल में डूबी हुई पृथ्वीका उद्धार करनेके लिये समस्त यज्ञमय वराह-शरीर ग्रहण किया था। आदिदैत्य हिरण्याक्ष जलके अंदर ही लडऩेके लिये उनके सामने आया। जैसे इन्द्रने अपने वज्रसे पर्वतोंके पंख काट डाले थे, वैसे ही वराह भगवान्ने अपनी दाढ़ोंसे उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये ॥ १ ॥ फिर उन्हीं प्रभु ने रुचि नामक प्रजापति की पत्नी आकूति के गर्भ से सुयज्ञके रूप में अवतार ग्रहण किया। उस अवतारमें उन्होंने दक्षिणा नामकी पत्नीसे सुयम नामके देवताओंको उत्पन्न किया और तीनों लोकोंके बड़े-बड़े सङ्कट हर लिये। इसीसे स्वायम्भुव मनुने उन्हें ‘हरि’के नामसे पुकारा ॥ २ ॥
नारद ! कर्दम प्रजापति के घर देवहूतिके गर्भसे नौ बहिनोंके साथ भगवान् ने कपिल के रूपमें अवतार ग्रहण किया। उन्होंने अपनी माता को उस आत्मज्ञान का उपदेश किया, जिससे वे इसी जन्म में अपने हृदयके सम्पूर्ण मल—तीनों गुणोंकी आसक्ति का सारा कीचड़ धोकर कपिल भगवान् के वास्तविक स्वरूप को प्राप्त हो गयीं ॥ ३ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🌺🪔जय श्रीहरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण