शुक्रवार, 27 सितंबर 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-दसवां अध्याय..(पोस्ट०६)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
द्वितीय स्कन्ध- दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

भागवत के दस लक्षण

गतिं जिगीषतः पादौ रुरुहातेऽभिकामिकाम् ।
पद्भ्यां  यज्ञः स्वयं हव्यं कर्मभिः क्रियते नृभिः ॥ २५ ॥
निरभिद्यत शिश्नो वै प्रजानन्द अमृतार्थिनः ।
उपस्थ आसीत् कामानां प्रियं तद् उभयाश्रयम् ॥ २६ ॥
उत्सिसृक्षोः धातुमलं निरभिद्यत वै गुदम् ।
ततः पायुस्ततो मित्र उत्सर्ग उभयाश्रयः ॥ २७ ॥
आसिसृप्सोः पुरः पुर्या नाभिद्वारं अपानतः ।
तत्र अपानः ततो मृत्युः पृथक्त्वं उभयाश्रयम् ॥ २८ ॥

जब उन्हें (विराट् पुरुष  को) अभीष्ट स्थान पर जाने की इच्छा हुई, तब उनके शरीर में पैर उग आये। चरणोंके साथ ही चरण-इन्द्रियके अधिष्ठातारूपमें वहाँ स्वयं यज्ञपुरुष भगवान्‌ विष्णु स्थित हो गये और उन्हींमें चलनारूप कर्म प्रकट हुआ। मनुष्य इसी चरणेन्द्रियसे चलकर यज्ञ-सामग्री एकत्र करते हैं ॥ २५ ॥ सन्तान, रति और स्वर्ग-भोगकी कामना होनेपर विराट् पुरुषके शरीरमें लिङ्गकी उत्पत्ति हुई। उसमें उपस्थेन्द्रिय और प्रजापति देवता तथा इन दोनोंके आश्रय रहनेवाले कामसुखका आविर्भाव हुआ ॥ २६ ॥ जब उन्हें मलत्यागकी इच्छा हुई, तब गुदाद्वार प्रकट हुआ। तत्पश्चात् उसमें पायु-इन्द्रिय और मित्र-देवता उत्पन्न हुए। इन्हीं दोनोंके द्वारा मलत्यागकी क्रिया सम्पन्न होती है ॥ २७ ॥  अपानमार्ग-द्वारा एक शरीरसे दूसरे शरीरमें जानेकी इच्छा होनेपर नाभिद्वार प्रकट हुआ। उससे अपान और मृत्यु देवता प्रकट हुए। इन दोनोंके आश्रयसे ही प्राण और अपानका बिछोह यानी मृत्यु होती है ॥ २८ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 💐🥀💐ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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