सोमवार, 14 अक्तूबर 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पहला अध्याय..(पोस्ट११)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध -पहला अध्याय..(पोस्ट११)

उद्धव और विदुर की भेंट

अपि स्वदोर्भ्यां विजयाच्युताभ्यां
    धर्मेण धर्मः परिपाति सेतुम् ।
दुर्योधनोऽतप्यत यत्सभायां
    साम्राज्यलक्ष्म्या विजयानुवृत्त्या ॥ ३६ ॥
किं वा कृताघेष्वघमत्यमर्षी
    भीमोऽहिवद्दीर्घतमं व्यमुञ्चत् ।
यस्याङ्‌घ्रिपातं रणभूर्न सेहे
    मार्गं गदायाश्चरतो विचित्रम् ॥ ३७ ॥
कच्चिद् यशोधा रथयूथपानां
    गाण्डीव धन्वोपरतारिरास्ते ।
अलक्षितो यच्छरकूटगूढो
    मायाकिरातो गिरिशस्तुतोष ॥ ३८ ॥
यमावुतस्वित्तनयौ पृथायाः
    पार्थैर्वृतौ पक्ष्मभिरक्षिणीव ।
रेमात उद्दाय मृधे स्वरिक्थं
    परात्सुपर्णाविव वज्रिवक्त्रात् ॥ ३९ ॥

(विदुरजी उद्धवजी से पूछ रहे हैं) महाराज युधिष्ठिर अपनी अर्जुन और श्रीकृष्णरूप दोनों भुजाओं की सहायता से धर्ममर्यादा का न्यायपूर्वक पालन करते हैं न ? मय दानव की बनायी हुई सभा में इनके राज्यवैभव और दबदबे को देखकर दुर्योधनको बड़ा डाह हुआ था ॥ ३६ ॥ 

अपराधियोंके प्रति अत्यन्त असहिष्णु भीमसेनने सर्पके समान दीर्घकालीन क्रोधको छोड़ दिया है क्या ? जब वे गदायुद्धमें तरह-तरहके पैंतरे बदलते थे, तब उनके पैरों की धमक से धरती डोलने लगती थी ॥ ३७ ॥ जिनके बाणों के जालसे छिपकर किरातवेषधारी, अतएव किसी की पहचान में न आनेवाले भगवान्‌ शङ्कर प्रसन्न हो गये थे, वे रथी और यूथपतियोंका सुयश बढ़ानेवाले गाण्डीवधारी अर्जुन तो प्रसन्न हैं न ? अब तो उनके सभी शत्रु शान्त हो चुके होंगे ? ॥ ३८ ॥ पलक जिस प्रकार नेत्रोंकी रक्षा करते हैं, उसी प्रकार कुन्तीके पुत्र युधिष्ठिरादि जिनकी सर्वदा सँभाल रखते हैं और कुन्तीने ही जिनका लालन-पालन किया है, वे माद्रीके यमज पुत्र नकुल-सहदेव कुशलसे तो हैं न ? उन्होंने युद्धमें शत्रुसे अपना राज्य उसी प्रकार छीन लिया, जैसे दो गरुड़ इन्द्रके मुखसे अमृत निकाल लायें ॥ ३९ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💟🥀🚩जय श्रीहरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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