॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)
कर्दमजी की तपस्या और भगवान् का वरदान
ऋषिरुवाच ।
इत्यव्यलीकं प्रणुतोऽब्जनाभः
तं आबभाषे वचसामृतेन ।
सुपर्णपक्षोपरि रोचमानः
प्रेमस्मित उद्वीक्षणविभ्रमद्भ्रूःप ॥ २२ ॥
श्रीभगवानुवाच -
विदित्वा तव चैत्यं मे पुरैव समयोजि तत् ।
यदर्थं आत्मनियमैः त्वयैवाहं समर्चितः ॥ २३ ॥
न वै जातु मृषैव स्यात् प्रजाध्यक्ष मदर्हणम् ।
भवद्विधेष्वतितरां मयि सङ्गृभितात्मनाम् ॥ २४ ॥
प्रजापतिसुतः सम्राट् मनुर्विख्यातमङ्गलः ।
ब्रह्मावर्तं योऽधिवसन् शास्ति सप्तार्णवां महीम् ॥ २५ ॥
स चेह विप्र राजर्षिः महिष्या शतरूपया ।
आयास्यति दिदृक्षुस्त्वां परश्वो धर्मकोविदः ॥ २६ ॥
आत्मजां असितापाङ्गीं वयःशीलगुणान्विताम् ।
मृगयन्तीं पतिं दास्यति अनुरूपाय ते प्रभो ॥ २७ ॥
मैत्रेयजी कहते हैं—भगवान्की भौंहें प्रणय मुसकानभरी चितवनसे चञ्चल हो रही थीं, वे गरुडजीके कंधेपर विराजमान थे। जब कर्दमजीने इस प्रकार निष्कपटभावसे उनकी स्तुति की तब वे उनसे अमृतमयी वाणीसे कहने लगे ॥ २२ ॥
श्रीभगवान्ने कहा—जिसके लिये तुमने आत्मसंयमादिके द्वारा मेरी आराधना की है, तुम्हारे हृदयके उस भावको जानकर मैंने पहलेसे ही उसकी व्यवस्था कर दी है ॥ २३ ॥ प्रजापते ! मेरी आराधना तो कभी भी निष्फल नहीं होती; फिर जिनका चित्त निरन्तर एकान्तरूपसे मुझमें ही लगा रहता है, उन तुम-जैसे महात्माओंके द्वारा की हुई उपासनाका तो और भी अधिक फल होता है ॥ २४ ॥ प्रसिद्ध यशस्वी सम्राट् स्वायम्भुव मनु ब्रह्मावर्तमें रहकर सात समुद्रवाली सारी पृथ्वीका शासन करते हैं ॥ २५ ॥ विप्रवर ! वे परम धर्मज्ञ महाराज महारानी शतरूपाके साथ तुमसे मिलनेके लिये परसों यहाँ आयेंगे ॥ २६ ॥ उनकी एक रूप-यौवन, शील और गुणोंसे सम्पन्न श्यामलोचना कन्या इस समय विवाहके योग्य है। प्रजापते ! तुम सर्वथा उसके योग्य हो, इसलिये वे तुम्हींको वह कन्या अर्पण करेंगे ॥ २७ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🥀जय श्री हरि: !!🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!