॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)
कर्दमजी की तपस्या और भगवान् का वरदान
समाहितं ते हृदयं यत्र इमान् परिवत्सरान् ।
सा त्वां ब्रह्मन् नृपवधूः काममाशु भजिष्यति ॥ २८ ॥
या ते आत्मभृतं वीर्यं नवधा प्रसविष्यति ।
वीर्ये त्वदीये ऋषय आधास्यन्ति अञ्जसात्मनः ॥ २९ ॥
त्वं च सम्यग् अनुष्ठाय निदेशं मे उशत्तमः ।
मयि तीर्थीकृताशेष क्रियार्थो मां प्रपत्स्यसे ॥ ३० ॥
कृत्वा दयां च जीवेषु दत्त्वा चाभयमात्मवान् ।
मय्यात्मानं सह जगद् द्रक्ष्यस्यात्मनि चापि माम् ॥ ३१ ॥
सहाहं स्वांशकलया त्वद्वीर्येण महामुने ।
तव क्षेत्रे देवहूत्यां प्रणेष्ये तत्त्वसंहिताम् ॥ ३२ ॥
(श्रीभगवान् कर्दमजी से कह रहे हैं) ब्रह्मन् ! गत अनेकों वर्षोंसे तुम्हारा चित्त जैसी भार्याके लिये समाहित रहा है, अब शीघ्र ही वह राजकन्या तुम्हारी वैसी ही पत्नी होकर यथेष्ट सेवा करेगी ॥ २८ ॥ वह तुम्हारा वीर्य अपने गर्भमें धारणकर उससे नौ कन्याएँ उत्पन्न करेगी और फिर तुम्हारी उन कन्याओं से लोकरीति के अनुसार मरीचि आदि ऋषिगण पुत्र उत्पन्न करेंगे ॥ २९ ॥ तुम भी मेरी आज्ञा का अच्छी तरह पालन करने से शुद्धचित्त हो, फिर अपने सब कर्मों का फल मुझे अर्पण कर मुझको ही प्राप्त होओगे ॥ ३० ॥ जीवों पर दया करते हुए तुम आत्मज्ञान प्राप्त करोगे और फिर सबको अभयदान दे अपने सहित सम्पूर्ण जगत् को मुझ में और मुझको अपनेमें स्थित देखोगे ॥ ३१ ॥ महामुने ! मैं भी अपने अंश-कलारूपसे तुम्हारे वीर्यद्वारा तुम्हारी पत्नी देवहूतिके गर्भमें अवतीर्ण होकर सांख्यशास्त्रकी रचना करूँगा ॥ ३२ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🥀जय श्री हरि: !! 🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
Jai shree Krishna 🙏🙏🌹🌼
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