॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - चौबीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)
श्रीकपिलदेवजी का जन्म
स चावतीर्णं त्रियुगं आज्ञाय विबुधर्षभम् ।
विविक्त उपसङ्गम्य प्रणम्य समभाषत ॥ २६ ॥
अहो पापच्यमानानां निरये स्वैरमङ्गलैः ।
कालेन भूयसा नूनं प्रसीदन्तीह देवताः ॥ २७ ॥
बहुजन्मविपक्वेन सम्यग् योगसमाधिना ।
द्रष्टुं यतन्ते यतयः शून्यागारेषु यत्पदम् ॥ २८ ॥
स एव भगवानद्य हेलनं न गणय्य नः ।
गृहेषु जातो ग्राम्याणां यः स्वानां पक्षपोषणः ॥ २९ ॥
स्वीयं वाक्यमृतं कर्तुमं अतीर्णोऽसि मे गृहे ।
चिकीर्षुर्भगवान् ज्ञानं भक्तानां मानवर्धनः ॥ ३० ॥
कर्दमजी ने देखा कि उनके यहाँ साक्षात् देवाधिदेव श्रीहरि ने ही अवतार लिया है, तो वे एकान्त में उनके पास गये और उन्हें प्रणाम करके इस प्रकार कहने लगे ॥ २६ ॥ ‘अहो ! अपने पापकर्मों के कारण इस दु:खमय संसार में नाना प्रकार से पीडित होते हुए पुरुषों पर देवगण तो बहुत काल बीतने पर प्रसन्न होते हैं ॥ २७ ॥ किन्तु जिनके स्वरूप को योगिजन अनेकों जन्मों के साधन से सिद्ध हुई सुदृढ़ समाधि के द्वारा एकान्त में देखने का प्रयत्न करते हैं, अपने भक्तों की रक्षा करनेवाले वे ही श्रीहरि हम विषयलोलुपों के द्वारा होनेवाली अपनी अवज्ञा का कुछ भी विचार न कर आज हमारे घर अवतीर्ण हुए हैं ॥ २८-२९ ॥ आप वास्तव में अपने भक्तों का मान बढ़ानेवाले हैं । आपने अपने वचनों को सत्य करने और सांख्ययोग का उपदेश करने के लिये ही मेरे यहाँ अवतार लिया है ॥ ३० ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🥀जय श्रीहरि: !!🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण