॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - चौबीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)
श्रीकपिलदेवजी का जन्म
गते शतधृतौ क्षत्तः कर्दमस्तेन चोदितः ।
यथोदितं स्वदुहितॄः प्रादाद्विश्वसृजां ततः ॥ २१ ॥
मरीचये कलां प्रादाद् अनसूयां अथात्रये ।
श्रद्धां अङ्गिरसेऽयच्छत् पुलस्त्याय हविर्भुवम् ॥ २२ ॥
पुलहाय गतिं युक्तां क्रतवे च क्रियां सतीम् ।
ख्यातिं च भृगवेऽयच्छद् वसिष्ठायाप्यरुन्धतीम् ॥ २३ ॥
अथर्वणेऽददाच्छान्तिं यया यज्ञो वितन्यते ।
विप्रर्षभान् कृतोद्वाहान् सदारान् समलालयत् ॥ २४ ॥
ततस्त ऋषयः क्षत्तः कृतदारा निमन्त्र्य तम् ।
प्रातिष्ठन् नन्दिमापन्नाः स्वं स्वमाश्रम मण्डलम् ॥ २५ ॥
ब्रह्माजीके चले जानेपर कर्दमजी ने उनके आज्ञानुसार मरीचि आदि प्रजापतियों के साथ अपनी कन्याओंका विधिपूर्वक विवाह कर दिया ॥ २१ ॥ उन्होंने अपनी कला नामकी कन्या मरीचिको, अनसूया अत्रिको, श्रद्धा अङ्गिराको और हविर्भू पुलस्त्यको समर्पित की ॥ २२ ॥ पुलहको उनके अनुरूप गति नामकी कन्या दी, क्रतुके साथ परम साध्वी क्रिया का विवाह किया, भृगुजीको ख्याति और वसिष्ठजीको अरुन्धती समर्पित की ॥ २३ ॥ अथर्वा ऋषिको शान्ति नामकी कन्या दी, जिससे यज्ञकर्मका विस्तार किया जाता है। कर्दमजीने उन विवाहित ऋषियोंका उनकी पत्नियोंके सहित खूब सत्कार किया ॥ २४ ॥ विदुरजी ! इस प्रकार विवाह हो जानेपर वे सब ऋषि कर्दमजीकी आज्ञा ले अति आनन्दपूर्वक अपने-अपने आश्रमोंको चले गये ॥ २५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💟🥀जय श्री हरि: !!🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जय श्री राधा रमण बिहारी जी