॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - बाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)
देवहूतिके साथ कर्दम प्रजापतिका विवाह
अयातयामाः तस्यासन् यामाः स्वान्तरयापनाः ।
श्रृण्वतो ध्यायतो विष्णोः कुर्वतो ब्रुवतः कथाः ॥ ३५ ॥
स एवं स्वान्तरं निन्ये युगानां एकसप्ततिम् ।
वासुदेवप्रसङ्गेन परिभूतगतित्रयः ॥ ३६ ॥
शारीरा मानसा दिव्या वैयासे ये च मानुषाः ।
भौतिकाश्च कथं क्लेशा बाधन्ते हरिसंश्रयम् ॥ ३७ ॥
यः पृष्टो मुनिभिः प्राह धर्मान् नानाविधान् शुभान् ।
नृणां वर्णाश्रमाणां च सर्वभूतहितः सदा ॥ ३८ ॥
एतत्ते आदिराजस्य मनोश्चरितमद्भुततम् ।
वर्णितं वर्णनीयस्य तदपत्योदयं श्रृणु ॥ ३९ ॥
भगवान् विष्णुकी कथाओंका श्रवण, ध्यान, रचना और निरूपण करते रहनेके कारण उनके मन्वन्तरको व्यतीत करनेवाले क्षण कभी व्यर्थ नहीं जाते थे ॥ ३५ ॥ इस प्रकार अपनी जाग्रत् आदि तीनों अवस्थाओं अथवा तीनों गुणोंको अभिभूत करके उन्होंने भगवान् वासुदेवके कथाप्रसङ्गमें अपने मन्वन्तरके इकहत्तर चतुर्युग पूरे कर दिये ॥ ३६ ॥ व्यासनन्दन विदुरजी ! जो पुरुष श्रीहरिके आश्रित रहता है, उसे शारीरिक, मानसिक, दैविक, मानुषिक अथवा भौतिक दु:ख किस प्रकार कष्ट पहुँचा सकते हैं ॥ ३७ ॥ मनुजी निरन्तर समस्त प्राणियोंके हितमें लगे रहते थे। मुनियों के पूछने पर उन्हों ने मनुष्यों के तथा समस्त वर्ण और आश्रमों के अनेक प्रकार के मङ्गलमय धर्मों का भी वर्णन किया (जो मनुसंहिता के रूप में अब भी उपलब्ध है) ॥३८॥
जगत् के सर्वप्रथम सम्राट् महाराज मनु वास्तवमें कीर्तन के योग्य थे। यह मैंने उनके अद्भुत चरित्र का वर्णन किया, अब उनकी कन्या देवहूति का प्रभाव सुनो ॥ ३९ ॥
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
तृतीयस्कन्धे द्वाविंशोऽध्यायः ॥ २२ ॥
हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🌺🥀जय श्रीहरि:🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
हरि:शरणम् !! हरि:शरणम् !!
हरि:शरणम् !!
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!