रविवार, 4 मई 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - तेईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - तेईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

कर्दम और देवहूतिका विहार

मैत्रेय उवाच ।

पितृभ्यां प्रस्थिते साध्वी पतिं इङ्‌कितकोविदा ।
नित्यं पर्यचरत् प्रीत्या भवानीव भवं प्रभुम् ॥ १ ॥
विश्रम्भेणात्मशौचेन गौरवेण दमेन च ।
शुश्रूषया सौहृदेन वाचा मधुरया च भोः ॥ २ ॥
विसृज्य कामं दम्भं च द्वेषं लोभमघं मदम् ।
अप्रमत्तोद्यता नित्यं तेजीयांसमतोषयत् ॥ ३ ॥
स वै देवर्षिवर्यस्तां मानवीं समनुव्रताम् ।
दैवाद्गवरीयसः पत्युः आशासानां महाशिषः ॥ ४ ॥
कालेन भूयसा क्षामां कर्शितां व्रतचर्यया ।
प्रेमगद्गसदया वाचा पीडितः कृपयाब्रवीत् ॥ ५ ॥

श्रीमैत्रेयजीने कहा—विदुरजी ! माता-पिताके चले जानेपर पतिके अभिप्रायको समझ लेनेमें कुशल साध्वी देवहूति कर्दमजीकी प्रतिदिन प्रेमपूर्वक सेवा करने लगी, ठीक उसी तरह, जैसे श्रीपार्वतीजी भगवान्‌ शङ्करकी सेवा करती हैं ॥ १ ॥ उसने काम-वासना, दम्भ, द्वेष, लोभ, पाप और मदका त्यागकर बड़ी सावधानी और लगनके साथ सेवामें तत्पर रहकर विश्वास, पवित्रता, गौरव, संयम, शुश्रूषा, प्रेम और मधुरभाषणादि गुणोंसे अपने परम तेजस्वी पतिदेवको सन्तुष्ट कर लिया ॥ २-३ ॥ देवहूति समझती थी कि मेरे पतिदेव दैवसे भी बढक़र हैं, इसलिये वह उनसे बड़ी- बड़ी आशाएँ रखकर उनकी सेवामें लगी रहती थी। इस प्रकार बहुत दिनोंतक अपना अनुवर्तन करने- वाली उस मनुपुत्रीको व्रतादिका पालन करनेसे दुर्बल हुई देख देवर्षिश्रेष्ठ कर्दमको दयावश कुछ खेद हुआ और उन्होंने उससे प्रेमगद्गद वाणीमें कहा ॥ ४-५ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💟🥀जय श्री हरि: !! 🙏
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    हे नाथ नारायण वासुदेव: 🙏

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