॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - छब्बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट१४)
महदादि भिन्न-भिन्न तत्त्वोंकी उत्पत्ति का वर्णन
एते हि अभ्युत्थिता देवा नैवास्योत्थापनेऽशकन् ।
पुनराविविशुः खानि तमुत्थापयितुं क्रमात् । ६२ ॥
वह्निर्वाचा मुखं भेजे नोदतिष्ठत् तदा विराट् ।
घ्राणेन नासिके वायुः नोदतिष्ठत् तदा विराट् । ६३ ॥
अक्षिणी चक्षुषादित्यो नोदतिष्ठत् तदा विराट् ।
श्रोत्रेण कर्णौ च दिशो नोदतिष्ठत् तदा विराट् । ६४ ॥
त्वचं रोमभिरोषध्यो नोदतिष्ठत् तदा विराट् ।
रेतसा शिश्नमापस्तु नोदतिष्ठत् तदा विराट् । ६५ ॥
गुदं मृत्युरपानेन नोदतिष्ठत् तदा विराट् ।
हस्ताविन्द्रो बलेनैव नोदतिष्ठत् तदा विराट् । ६६ ॥
विष्णुर्गत्यैव चरणौ नोदतिष्ठत् तदा विराट् ।
नाडीर्नद्यो लोहितेन नोदतिष्ठत् तदा विराट् । ६७ ॥
जब ये क्षेत्रज्ञ के अतिरिक्त सारे देवता उत्पन्न होकर भी विराट् पुरुष को उठाने में असमर्थ रहे, तो उसे उठानेके लिये क्रमश: फिर अपने-अपने उत्पत्तिस्थानोंमें प्रविष्ट होने लगे ॥ ६२ ॥ अग्नि ने वाणी के साथ मुख में प्रवेश किया, परन्तु इससे विराट् पुरुष न उठा। वायु ने घ्राणेन्द्रियके सहित नासाछिद्रों में प्रवेश किया, फिर भी विराट् पुरुष न उठा ॥ ६३ ॥ सूर्य ने चक्षु के सहित नेत्रों में प्रवेश किया, तब भी विराट् पुरुष न उठा। दिशाओंने श्रवणेन्द्रिय के सहित कानों में प्रवेश किया, तो भी विराट् पुरुष न उठा ॥ ६४ ॥ ओषधियों ने रोमों के सहित त्वचा में प्रवेश किया फिर भी विराट् पुरुष न उठा। जल ने वीर्यके साथ लिङ्ग में प्रवेश किया, तब भी विराट् पुरुष न उठा ॥ ६५ ॥ मृत्यु ने अपान के साथ गुदा में प्रवेश किया, फिर भी विराट् पुरुष न उठा। इन्द्र ने बल के साथ हाथों में प्रवेश किया, परन्तु इससे भी विराट् पुरुष न उठा ॥ ६६ ॥ विष्णु ने गति के सहित चरणोंमें प्रवेश किया, तो भी विराट् पुरुष न उठा । नदियों ने रुधिर के सहित नाडियों में प्रवेश किया, तब भी विराट् पुरुष न उठा ॥ ६७ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💟🥀ॐ श्रीपरमात्मने नमः
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
नारायण नारायण नारायण नारायण