बुधवार, 18 जून 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - छब्बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट१५)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - छब्बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट१५)

महदादि भिन्न-भिन्न तत्त्वोंकी  उत्पत्ति का वर्णन

क्षुत्तृड्भ्यां उदरं सिन्धुः नोदतिष्ठत् तदा विराट् ।
हृदयं मनसा चन्द्रो नोदतिष्ठत् तदा विराट् । ६८ ॥
बुद्ध्या ब्रह्मापि हृदयं नोदतिष्ठत् तदा विराट् ।
रुद्रोऽभिमत्या हृदयं नोदतिष्ठत् तदा विराट् । ६९ ॥
चित्तेन हृदयं चैत्यः क्षेत्रज्ञः प्राविशद्यदा ।
विराट्तदैव पुरुषः सलिलाद् उदतिष्ठत ॥ ७० ॥
यथा प्रसुप्तं पुरुषं प्राणेन्द्रियमनोधियः ।
प्रभवन्ति विना येन नोत्थापयितुमोजसा ॥ ७१ ॥
तमस्मिन् प्रत्यगात्मानं धिया योगप्रवृत्तया ।
भक्त्या विरक्त्या ज्ञानेन विविच्यात्मनि चिन्तयेत् ॥ ७२ ॥

समुद्रने क्षुधा-पिपासाके सहित उदरमें प्रवेश किया, फिर भी विराट् पुरुष न उठा। चन्द्रमाने मनके सहित हृदयमें प्रवेश किया, तो भी विराट् पुरुष न उठा ॥ ६८ ॥ ब्रह्माने बुद्धिके सहित हृदयमें प्रवेश किया, तब भी विराट् पुरुष न उठा। रुद्रने अहंकारके सहित उसी हृदयमें प्रवेश किया, तो भी विराट् पुरुष न उठा ॥ ६९ ॥ किन्तु जब चित्तके अधिष्ठाता क्षेत्रज्ञने चित्तके सहित हृदयमें प्रवेश किया, तो विराट् पुरुष उसी समय जलसे उठकर खड़ा हो गया ॥ ७० ॥ जिस प्रकार लोकमें प्राण, इन्द्रिय, मन और बुद्धि आदि चित्तके अधिष्ठाता क्षेत्रज्ञकी सहायताके बिना सोये हुए प्राणीको अपने बलसे नहीं उठा सकते, उसी प्रकार विराट् पुरुषको भी वे क्षेत्रज्ञ परमात्माके बिना नहीं उठा सके ॥ ७१ ॥ अत: भक्ति, वैराग्य और चित्तकी एकाग्रतासे प्रकट हुए ज्ञानके द्वारा उस अन्तरात्मस्वरूप क्षेत्रज्ञको इस शरीरमें स्थित जानकर उसका चिन्तन करना चाहिये ॥ ७२ ॥

इति श्रीमद्‌भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां तृतीयस्कन्धे षड्‌विंशोऽध्यायः ॥२६

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌹💖🥀 ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    हे करुणामय सर्वात्म सर्वत्र व्याप्त परब्रह्म परमेश्वर हे सर्वेश्वर योगेश्वर आपका हर क्षण सहस्त्रों सहस्त्रों कोटिश: चरण वंदन 🙏🙏

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