॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
चतुर्थ स्कन्ध – चौथा अध्याय..(पोस्ट०७)
सती का अग्निप्रवेश
तत्पश्यतां खे भुवि चाद्भुितं महत्
हा हेति वादः सुमहान् अजायत ।
हन्त प्रिया दैवतमस्य देवी
जहावसून्केन सती प्रकोपिता ॥ २८ ॥
अहो अनात्म्यं महदस्य पश्यत
प्रजापतेर्यस्य चराचरं प्रजाः ।
जहावसून्यद्विमताऽऽत्मजा
सती मनस्विनी मानमभीक्ष्णमर्हति ॥ २९ ॥
सोऽयं दुर्मर्षहृदयो ब्रह्मध्रुक् च
लोकेऽपकीर्तिं महतीमवाप्स्यति ।
यदङ्गजां स्वां पुरुषद्विडुद्यतां
न प्रत्यषेधन्मृतयेऽपराधतः ॥ ३० ॥
वदत्येवं जने सत्या दृष्ट्वासुत्यागमद्भु॥तम् ।
दक्षं तत्पार्षदा हन्तुं उदतिष्ठन्नुदायुधाः ॥ ३१ ॥
तेषां आपततां वेगं निशाम्य भगवान् भृगुः ।
यज्ञघ्नघ्नेन यजुषा दक्षिणाग्नौ जुहाव ह ॥ ३२ ॥
अध्वर्युणा हूयमाने देवा उत्पेतुरोजसा ।
ऋभवो नाम तपसा सोमं प्राप्ताः सहस्रशः ॥ ३३ ॥
तैरलातायुधैः सर्वे प्रमथाः सहगुह्यकाः ।
हन्यमाना दिशो भेजुः उशद्भिर्ब्रह्मतेजसा ॥ ३४ ॥
उस समय वहाँ आये हुए देवता आदिने जब सतीका देहत्यागरूप यह महान् आश्चर्यमय चरित्र देखा, तब वे सभी हाहाकार करने लगे और वह भयङ्कर कोलाहल आकाशमें एवं पृथ्वीतलपर सभी जगह फैल गया। सब ओर यही सुनायी देता था—‘हाय ! दक्षके दुर्व्यवहार से कुपित होकर देवाधिदेव महादेवकी प्रिया सतीने प्राण त्याग दिये ! ॥ २८ ॥ देखो, सारे चराचर जीव इस दक्षप्रजापतिकी ही सन्तान हैं; फिर भी इसने कैसी भारी दुष्टता की है ! इसकी पुत्री शुद्धहृदया सती सदा ही मान पानेके योग्य थी, किन्तु इसने उसका ऐसा निरादर किया कि उसने प्राण त्याग दिये ॥ २९ ॥ वास्तवमें यह बड़ा ही असहिष्णु और ब्राह्मणद्रोही है। अब इसकी संसारमें बड़ी अपकीर्ति होगी। जब इसकी पुत्री सती इसीके अपराधसे प्राणत्याग करनेको तैयार हुई, तब भी इस शङ्करद्रोही ने उसे रोका तक नहीं !’ ॥ ३० ॥ जिस समय सब लोग ऐसा कह रहे थे, उसी समय शिवजी के पार्षद सती का यह अद्भुत प्राणत्याग देख, अस्त्र-शस्त्र लेकर दक्षको मारनेके लिये उठ खड़े हुए ॥ ३१ ॥ उनके आक्रमणका वेग देखकर भगवान् भृगुने यज्ञमें विघ्न डालनेवालोंका नाश करनेके लिये ‘अपहतं रक्ष.......’ इत्यादि मन्त्रका उच्चारण करते हुए दक्षिणाग्नि में आहुति दी ॥ ३२ ॥ अध्वर्यु भृगुने ज्यों ही आहुति छोड़ी कि यज्ञकुण्डसे ‘ऋभु’ नामके हजारों तेजस्वी देवता प्रकट हो गये। इन्होंने अपनी तपस्याके प्रभावसे चन्द्रलोक प्राप्त किया था ॥ ३३ ॥ उन ब्रह्मतेजसम्पन्न देवताओंने जलती हुई लकडिय़ोंसे आक्रमण किया, तो समस्त गुह्यक और प्रमथगण इधर-उधर भाग गये ॥ ३४ ॥
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां चतुर्थस्कन्धे सतीदेहोत्सर्गो नाम चतुर्थोऽध्यायः ॥ ४ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
💐🌺🥀💐ॐ श्रीपरमात्मने नमः 🙏 ॐ नमः शिवाय 🙏
जवाब देंहटाएंश्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!