रविवार, 14 सितंबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - पांचवां अध्याय..(पोस्ट०४)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध – पाँचवाँ  अध्याय..(पोस्ट०४)

वीरभद्रकृत दक्षयज्ञविध्वंस और दक्षवध

सर्व एवर्त्विजो दृष्ट्वा सदस्याः सदिवौकसः ।
तैरर्द्यमानाः सुभृशं ग्रावभिर्नैकधाद्रवन् ॥ १८ ॥
जुह्वतः स्रुवहस्तस्य श्मश्रूणि भगवान्भवः ।
भृगोर्लुलुञ्चे सदसि योऽहसत् श्मश्रु दर्शयन् ॥ १९ ॥
भगस्य नेत्रे भगवान् पातितस्य रुषा भुवि ।
उज्जहार सदःस्थोऽक्ष्णा यः शपन्तं असूसुचत् ॥ २० ॥
पूष्णो ह्यपातयद् दन्तान् कालिङ्‌गस्य यथा बलः ।
शप्यमाने गरिमणि योऽहसद् दर्शयन्दतः ॥ २१ ॥
आक्रम्योरसि दक्षस्य शितधारेण हेतिना । 
छिन्दन्नपि तदुद्धर्तुं नाशक्नोत् त्र्यम्बकस्तदा ॥ २२ ॥
शस्त्रैरस्त्रान्वितैरेवं अनिर्भिन्नत्वचं हरः ।
विस्मयं परमापन्नो दध्यौ पशुपतिश्चिरम् ॥ २३ ॥
दृष्ट्वा संज्ञपनं योगं पशूनां स पतिर्मखे ।
यजमानपशोः कस्य कायात्तेनाहरच्छिरः ॥ २४ ॥
साधुवादस्तदा तेषां कर्म तत्तस्य शंसताम् ।
भूतप्रेतपिशाचानां अन्येषां तद्विपर्ययः ॥ २५ ॥
जुहावैतच्छिरस्तस्मिन् दक्षिणाग्नावमर्षितः ।
तद्देवयजनं दग्ध्वा प्रातिष्ठद् गुह्यकालयम् ॥ २६ ॥

भगवान्‌ शङ्करके पार्षदोंकी यह भयङ्कर लीला देखकर तथा उनके कंकड़-पत्थरोंकी मारसे बहुत तंग आकर वहाँ जितने ऋत्विज्, सदस्य और देवतालोग थे, सब-के-सब जहाँ-तहाँ भाग गये ॥ १८ ॥ भृगुजी हाथमें स्रुवा लिये हवन कर रहे थे। वीरभद्रने इनकी दाढ़ी-मूँछ नोच लीं; क्योंकि इन्होंने प्रजापतियोंकी सभामें मूँछें ऐंठते हुए महादेवजीका उपहास किया था ॥ १९ ॥ उन्होंने क्रोधमें भरकर भगदेवताको पृथ्वीपर पटक दिया और उनकी आँखें निकाल लीं; क्योंकि जब दक्ष देवसभामें श्रीमहादेवजीको बुरा-भला कहते हुए शाप दे रहे थे, उस समय इन्होंने दक्षको सैन देकर उकसाया था ॥ २० ॥ इसके पश्चात् जैसे अनिरुद्धके विवाहके समय बलरामजीने कलिङ्गराजके दाँत उखाड़े थे, उसी प्रकार उन्होंने पूषाके दाँत तोड़ दिये; क्योंकि जब दक्षने महादेवजीको गालियाँ दी थीं, उस समय ये दाँत दिखाकर हँसे थे ॥ २१ ॥ फिर वे दक्षकी छातीपर बैठकर एक तेज तलवारसे उसका सिर काटने लगे, परन्तु बहुत प्रयत्न करनेपर भी वे उस समय उसे धड़से अलग न कर सके ॥ २२ ॥ जब किसी भी प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंसे दक्षकी त्वचा नहीं कटी, तब वीरभद्रको बड़ा आश्चर्य हुआ और वे बहुत देरतक विचार करते रहे ॥ २३ ॥ तब उन्होंने यज्ञमण्डपमें यज्ञपशुओंको जिस प्रकार मारा जाता था, उसे देखकर उसी प्रकार दक्षरूप उस यजमान पशुका सिर धड़से अलग कर दिया ॥ २४ ॥ यह देखकर भूत, प्रेत और पिशाचादि तो उनके इस कर्मकी प्रशंसा करते हुए ‘वाह-वाह’ करने लगे और दक्षके दलवालोंमें हाहाकार मच गया ॥ २५ ॥ वीरभद्रने अत्यन्त कुपित होकर दक्षके सिरको यज्ञकी दक्षिणाग्नि में डाल दिया और उस यज्ञशालामें आग लगाकर यज्ञको विध्वंस करके वे कैलासपर्वतको लौट गये ॥ २६ ॥

इति श्रीमद्‌भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां चतुर्थस्कन्धे दक्षयज्ञविध्वंसो नाम पञ्चमोऽध्यायः ॥ ५ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌺💐🌺🔱जय श्रीहरि: 🙏
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    नमः पार्वती पतये हर हर महादेव

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