सोमवार, 13 अक्टूबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - चौदहवां अध्याय..(पोस्ट०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध – चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

राजा वेन की कथा

अहेरिव पयःपोषः पोषकस्याप्यनर्थभृत् ।
वेनः प्रकृत्यैव खलः सुनीथागर्भसम्भवः ॥ १० ॥
निरूपितः प्रजापालः स जिघांसति वै प्रजाः ।
तथापि सान्त्वयेमामुं नास्मान् तत्पातकं स्पृशेत् ॥ ११ ॥
तद् विद्वद्‌भिः असद्‌वृत्तो वेनोऽस्माभिः कृतो नृपः ।
सान्त्वितो यदि नो वाचं न ग्रहीष्यत्यधर्मकृत् ॥ १२ ॥
लोकधिक्कारसन्दग्धं दहिष्यामः स्वतेजसा ।
एवं अध्यवसायैनं मुनयो गूढमन्यवः ॥ १३ ॥
उपव्रज्याब्रुवन् वेनं सान्त्वयित्वा च सामभिः ॥ १३ ॥

मुनय ऊचुः –
नृपवर्य निबोधैतद् यत्ते विज्ञापयाम भोः ।
आयुःश्रीबलकीर्तीनां तव तात विवर्धनम् ॥ १४ ॥
धर्म आचरितः पुंसां वाङ्‌मनःकायबुद्धिभिः ।
लोकान् विशोकान् वितरति अथ अनन्त्यमसङ्‌गिनाम् ॥ १५ ॥
स ते मा विनशेद्वीर प्रजानां क्षेमलक्षणः ।
यस्मिन् विनष्टे नृपतिः ऐश्वर्यादवरोहति ॥ १६ ॥
राजन् असाध्वमात्येभ्यः चोरादिभ्यः प्रजा नृपः ।
रक्षन् यथा बलिं गृह्णन् इह प्रेत्य च मोदते ॥ १७ ॥
यस्य राष्ट्रे पुरे चैव भगवान् यज्ञपूरुषः ।
इज्यते स्वेन धर्मेण जनैर्वर्णाश्रमान्वितैः ॥ १८ ॥
तस्य राज्ञो महाभाग भगवान् भूतभावनः ।
परितुष्यति विश्वात्मा तिष्ठतो निजशासने ॥ १९ ॥

सुनीथा की कोख से उत्पन्न हुआ यह वेन स्वभावसे ही दुष्ट है। परन्तु साँपको दूध पिलाने के समान इसको पालना-पालनेवालों के लिये अनर्थका कारण हो गया ॥ १० ॥ हमने इसे प्रजाकी रक्षा करनेके लिये नियुक्त किया था, यह आज उसीको नष्ट करनेपर तुला हुआ है। इतना सब होनेपर भी हमें इसे समझाना अवश्य चाहिये; ऐसा करनेसे इसके किये हुए पाप हमें स्पर्श नहीं करेंगे ॥ ११ ॥ हमने जान-बूझकर दुराचारी वेनको राजा बनाया था। किन्तु यदि समझानेपर भी यह हमारी बात नहीं मानेगा, तो लोक के धिक्कार से दग्ध हुए इस दुष्ट को हम अपने तेज से भस्म कर देंगे।’ ऐसा विचार करके मुनिलोग वेनके पास गये और अपने क्रोधको छिपाकर उसे प्रिय वचनोंसे समझाते हुए इस प्रकार कहने लगे ॥ १२-१३ ॥
मुनियोंने कहा—राजन् ! हम आपसे जो बात कहते हैं, उसपर ध्यान दीजिये। इससे आपकी आयु, श्री, बल और कीर्तिकी वृद्धि होगी ॥ १४ ॥ तात ! यदि मनुष्य मन, वाणी, शरीर और बुद्धिसे धर्मका आचरण करे, तो उसे स्वर्गादि शोकरहित लोकोंकी प्राप्ति होती है। यदि उसका निष्काम भाव हो, तब तो वही धर्म उसे अनन्त मोक्षपदपर पहुँचा देता है ॥ १५ ॥ इसलिये वीरवर ! प्रजाका कल्याणरूप वह धर्म आपके कारण नष्ट नहीं होना चाहिये। धर्मके नष्ट होनेसे राजा भी ऐश्वर्यसे च्युत हो जाता है ॥ १६ ॥ जो राजा दुष्ट मन्त्री और चोर आदिसे अपनी प्रजाकी रक्षा करते हुए न्यायानुकूल कर लेता है, वह इस लोकमें और परलोकमें दोनों जगह सुख पाता है ॥ १७ ॥ जिसके राज्य अथवा नगरमें वर्णाश्रम-धर्मोंका पालन करनेवाले पुरुष स्वधर्मपालनके द्वारा भगवान्‌ यज्ञपुरुषकी आराधना करते हैं, महाभाग ! अपनी आज्ञाका पालन करनेवाले उस राजासे भगवान्‌ प्रसन्न रहते हैं; क्योंकि वे ही सारे विश्वकी आत्मा तथा सम्पूर्ण भूतोंके रक्षक हैं ॥ १८-१९ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💟🥀जय श्रीकृष्ण 🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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