॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
चतुर्थ स्कन्ध – चौदहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)
राजा वेन की कथा
मैत्रेय उवाच –
भृग्वादयस्ते मुनयो लोकानां क्षेमदर्शिनः ।
गोप्तर्यसति वै नॄणां पश्यन्तः पशुसाम्यताम् ॥ १ ॥
वीरमातरमाहूय सुनीथां ब्रह्मवादिनः ।
प्रकृत्यसम्मतं वेनं अभ्यषिञ्चन् पतिं भुवः ॥ २ ॥
श्रुत्वा नृपासनगतं वेनमत्युग्रशासनम् ।
निलिल्युर्दस्यवः सद्यः सर्पत्रस्ता इवाखवः ॥ ३ ॥
स आरूढनृपस्थान उन्नद्धोऽष्टविभूतिभिः ।
अवमेने महाभागान्स्तब्धः सम्भावितः स्वतः ॥ ४ ॥
एवं मदान्ध उत्सिक्तो निरङ्कुश इव द्विपः ।
पर्यटन् रथमास्थाय कम्पयन् इव रोदसी ॥ ५ ॥
न यष्टव्यं न दातव्यं न होतव्यं द्विजाः क्वचित् ।
इति न्यवारयद् धर्मं भेरीघोषेण सर्वशः ॥ ६ ॥
वेनस्यावेक्ष्य मुनयो दुर्वृत्तस्य विचेष्टितम् ।
विमृश्य लोकव्यसनं कृपयोचुः स्म सत्रिणः ॥ ७ ॥
अहो उभयतः प्राप्तं लोकस्य व्यसनं महत् ।
दारुणि उभयतो दीप्ते इव तस्करपालयोः ॥ ८ ॥
अराजकभयादेष कृतो राजातदर्हणः ।
ततोऽप्यासीद्भयं त्वद्य कथं स्यात् स्वस्ति देहिनाम् ॥ ९ ॥
श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—वीरवर विदुरजी ! सभी लोकोंकी कुशल चाहनेवाले भृगु आदि मुनियोंने देखा कि अङ्गके चले जानेसे अब पृथ्वीकी रक्षा करनेवाला कोई नहीं रह गया है, सब लोग पशुओंके समान उच्छृङ्खल होते जा रहे हैं ॥ १ ॥ तब उन्होंने माता सुनीथाकी सम्मतिसे, मन्त्रियोंके सहमत न होनेपर भी वेनको भूमण्डलके राजपदपर अभिषिक्त कर दिया ॥ २ ॥ वेन बड़ा कठोर शासक था। जब चोर-डाकुओंने सुना कि वही राजसिंहासनपर बैठा है, तब सर्पसे डरे हुए चूहोंके समान वे सब तुरंत ही जहाँ-तहाँ छिप गये ॥ ३ ॥ राज्यासन पानेपर वेन आठों लोकपालोंकी ऐश्वर्यकलाके कारण उन्मत्त हो गया और अभिमानवश अपनेको ही सबसे बड़ा मानकर महापुरुषोंका अपमान करने लगा ॥ ४ ॥ वह ऐश्वर्यमदसे अंधा हो रथपर चढक़र निरङ्कुश गजराजके समान पृथ्वी और आकाशको कँपाता हुआ सर्वत्र विचरने लगा ॥ ५ ॥ ‘कोई भी द्विजातिवर्णका पुरुष कभी किसी प्रकारका यज्ञ, दान और हवन न करे’ अपने राज्यमें यह ढिंढोरा पिटवाकर उसने सारे धर्म-कर्म बंद करवा दिये ॥ ६ ॥
दुष्ट वेनका ऐसा अत्याचार देख सारे ऋषि-मुनि एकत्र हुए और संसारपर सङ्कट आया समझकर करुणावश आपसमें कहने लगे ॥ ७ ॥ ‘अहो ! जैसे दोनों ओर जलती हुई लकड़ीके बीचमें रहनेवाले चींटी आदि जीव महान् सङ्कटमें पड़ जाते हैं, वैसे ही इस समय सारी प्रजा एक ओर राजाके और दूसरी ओर चोर-डाकुओंके अत्याचारसे महान् सङ्कटमें पड़ रही है ॥ ८ ॥ हमने अराजकताके भयसे ही अयोग्य होनेपर भी वेनको राजा बनाया था; किन्तु अब उससे भी प्रजाको भय हो गया। ऐसी अवस्थामें प्रजाको किस प्रकार सुख-शान्ति मिल सकती है ? ॥ ९ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
💐💐💐जय श्रीहरि: !!🙏
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नारायण नारायण नारायण नारायण