॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
चतुर्थ स्कन्ध –तेरहवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)
ध्रुववंश का वर्णन, राजा अङ्ग का चरित्र
तांस्तान् कामान् गरिर्दद्यान् यान् कामयते जनः ।
आराधितो यथैवैष तथा पुंसां फलोदयः ॥ ३४ ॥
इति व्यवसिता विप्राः तस्य राज्ञः प्रजातये ।
पुरोडाशं निरवपन् शिपिविष्टाय विष्णवे ॥ ३५ ॥
तस्मात्पुरुष उत्तस्थौ हेममाल्यमलाम्बरः ।
हिरण्मयेन पात्रेण सिद्धमादाय पायसम् ॥ ३६ ॥
स विप्रानुमतो राजा गृहीत्वाञ्जलिनौदनम् ।
अवघ्राय मुदा युक्तः प्रादात्पत्न्या। उदारधीः ॥ ३७ ॥
सा तत्पुंसवनं राज्ञी प्राश्य वै पत्युरादधे ।
गर्भं काल उपावृत्ते कुमारं सुषुवेऽप्रजा ॥ ३८ ॥
स बाल एव पुरुषो मातामहमनुव्रतः ।
अधर्मांशोद्भवं मृत्युं तेनाभवद् अधार्मिकः ॥ ३९ ॥
स शरासनमुद्यम्य मृगयुर्वनगोचरः ।
हन्त्यसाधुर्मृगान् दीनान् वेनोऽसावित्यरौज्जनः ॥ ४० ॥
आक्रीडे क्रीडतो बालान् वयस्यान् अतिदारुणः ।
प्रसह्य निरनुक्रोशः पशुमारममारयत् ॥ ४१ ॥
भक्त जिस-जिस वस्तुकी इच्छा करता है, श्रीहरि उसे वही-वही पदार्थ देते हैं। उनकी जिस प्रकार आराधना की जाती है उसी प्रकार उपासकको फल भी मिलता है ॥ ३४ ॥
इस प्रकार राजा अङ्गको पुत्रप्राप्ति करानेका निश्चय कर ऋत्विजोंने पशुमें यज्ञरूपसे रहनेवाले श्रीविष्णुभगवान्के पूजनके लिये पुरोडाश नामक चरु समर्पण किया ॥ ३५ ॥ अग्नि में आहुति डालते ही अग्निकुण्डसे सोनेके हार और शुभ्र वस्त्रोंसे विभूषित एक पुरुष प्रकट हुए; वे एक स्वर्णपात्रमें सिद्ध खीर लिये हुए थे ॥ ३६ ॥ उदारबुद्धि राजा अङ्ग ने याजकों की अनुमति से अपनी अञ्जलिमें वह खीर ले ली और उसे स्वयं सूँघकर प्रसन्नतापूर्वक अपनी पत्नीको दे दिया ॥ ३७ ॥ पुत्रहीना रानीने वह पुत्र प्रदायिनी खीर खाकर अपने पतिके सहवाससे गर्भ धारण किया। उससे यथासमय उसके एक पुत्र हुआ ॥ ३८ ॥ वह बालक बाल्यावस्थासे ही अधर्मके वंशमें उत्पन्न हुए अपने नाना मृत्युका अनुगामी था (सुनीथा मृत्युकी ही पुत्री थी); इसलिये वह भी अधार्मिक ही हुआ ॥ ३९ ॥
वह दुष्ट बालक धनुष-बाण चढ़ाकर वनमें जाता और व्याधके समान बेचारे भोलेभाले हरिणोंकी हत्या करता। उसे देखते ही पुरवासीलोग ‘वेन आया ! वेन आया !’ कहकर पुकार उठते ॥ ४० ॥ वह ऐसा क्रूर और निर्दयी था कि मैदानमें खेलते हुए अपनी बराबरीके बालकोंको पशुओंकी भाँति बलात् मार डालता ॥ ४१ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💟🥀ॐश्रीपरमात्मने नमः
जवाब देंहटाएंनारायण नारायण नारायण नारायण
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!🙏