शनिवार, 11 अक्टूबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - तेरहवां अध्याय..(पोस्ट०४)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध –तेरहवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)

ध्रुववंश का वर्णन, राजा अङ्ग का चरित्र

मैत्रेय उवाच –

अङ्‌गोऽश्वमेधं राजर्षिः आजहार महाक्रतुम् ।
नाजग्मुर्देवतास्तस्मिन् आहूता ब्रह्मवादिभिः ॥ २५ ॥
तं ऊचुः विस्मितास्तत्र यजमानमथर्त्विजः ।
हवींषि हूयमानानि न ते गृह्णन्ति देवताः ॥ २६ ॥
राजन्हवींष्यदुष्टानि श्रद्धयाऽऽसादितानि ते ।
छन्दांस्ययातयामानि योजितानि धृतव्रतैः ॥ २७ ॥
न विदामेह देवानां हेलनं वयमण्वपि ।
यन्न गृह्णन्ति भागान् स्वान् ये देवाः कर्मसाक्षिणः ॥ २८ ॥

मैत्रेय उवाच –

अङ्‌गो द्विजवचः श्रुत्वा यजमानः सुदुर्मनाः ।
तत्प्रष्टुं व्यसृजद् वाचं सदस्यान् तदनुज्ञया ॥ २९ ॥
नागच्छन्त्याहुता देवा न गृह्णन्ति ग्रहानिह ।
सदसस्पतयो ब्रूत किमवद्यं मया कृतम् ॥ ३० ॥

सदसस्पतय ऊचुः –

नरदेवेह भवतो नाघं तावन् मनाक् स्थितम् ।
अस्त्येकं प्राक्तनमघं यदिहेदृक् त्वमप्रजः ॥ ३१ ॥
तथा साधय भद्रं ते आत्मानं सुप्रजं नृप ।
इष्टस्ते पुत्रकामस्य पुत्रं दास्यति यज्ञभुक् ॥ ३२ ॥
तथा स्वभागधेयानि ग्रहीष्यन्ति दिवौकसः ।
यद् यज्ञपुरुषः साक्षाद् अपत्याय हरिर्वृतः ॥ ३३ ॥

श्रीमैत्रेयजीने कहा—विदुरजी ! एक बार राजर्षि अङ्गने अश्वमेध-महायज्ञका अनुष्ठान किया। उसमें वेदवादी ब्राह्मणोंके आवाहन करनेपर भी देवतालोग अपना भाग लेने नहीं आये ॥ २५ ॥ तब ऋत्विजोंने विस्मित होकर यजमान अङ्ग से कहा—‘राजन् ! हम आहुतियों के रूप में आपका जो घृत आदि पदार्थ हवन कर रहे हैं, उसे देवता लोग स्वीकार नहीं करते ॥ २६ ॥ हम जानते हैं आपकी होम-सामग्री दूषित नहीं है; आपने उसे बड़ी श्रद्धासे जुटाया है तथा वेदमन्त्र भी किसी प्रकार बलहीन नहीं हैं; क्योंकि उनका प्रयोग करनेवाले ऋत्विज्  गण याजकोचित सभी नियमोंका पूर्णतया पालन करते हैं ॥ २७ ॥ हमें ऐसी कोई बात नहीं दीखती कि इस यज्ञमंो देवताओंका किञ्चित् भी तिरस्कार हुआ है—फिर भी कर्माध्यक्ष देवतालोग क्यों अपना भाग नहीं ले रहे हैं ?’ ॥ २८ ॥
श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—ऋत्विजोंकी बात सुनकर यजमान अङ्ग बहुत उदास हुए। तब उन्होंने याजकोंकी अनुमतिसे मौन तोडक़र सदस्योंसे पूछा ॥ २९ ॥ ‘सदस्यो ! देवतालोग आवाहन करनेपर भी यज्ञमें नहीं आ रहे हैं और न सोमपात्र ही ग्रहण करते हैं; आप बतलाइये मुझसे ऐसा क्या अपराध हुआ है ?’ ॥ ३० ॥
सदस्योंने कहा—राजन् ! इस जन्ममें तो आपसे तनिक भी अपराध नहीं हुआ; हाँ, पूर्वजन्मका एक अपराध अवश्य है, जिसके कारण आप ऐसे सर्वगुण-सम्पन्न होनेपर भी पुत्रहीन हैं ॥ ३१ ॥ आपका कल्याण हो ! इसलिये पहले आप सुपुत्र प्राप्त करनेका कोई उपाय कीजिये। यदि आप पुत्रकी कामनासे यज्ञ करेंगे, तो भगवान्‌ यज्ञेश्वर आपको अवश्य पुत्र प्रदान करेंगे ॥ ३२ ॥ जब सन्तानके लिये साक्षात् यज्ञपुरुष श्रीहरिका आवाहन किया जायगा, तब देवतालोग स्वयं ही अपना- अपना यज्ञ-भाग ग्रहण करेंगे ॥ ३३ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💟🥀ॐश्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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