गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - उन्नीसवां अध्याय..(पोस्ट०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध – उन्नीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

महाराज पृथु के सौ अश्वमेध यज्ञ

इति चाधोक्षजेशस्य पृथोस्तु परमोदयम् ।
असूयन् भगवान् इन्द्रः प्रतिघातमचीकरत् ॥ १० ॥
चरमेणाश्वमेधेन यजमाने यजुष्पतिम् ।
वैन्ये यज्ञपशुं स्पर्धन् अपोवाह तिरोहितः ॥ ११ ॥
तं अत्रिर्भगवानैक्षत् त्वरमाणं विहायसा ।
आमुक्तमिव पाखण्डं योऽधर्मे धर्मविभ्रमः ॥ १२ ॥
अत्रिणा चोदितो हन्तुं पृथुपुत्रो महारथः ।
अन्वधावत सङ्‌क्रुद्धः तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत् ॥ १३ ॥
तं तादृशाकृतिं वीक्ष्य मेने धर्मं शरीरिणम् ।
जटिलं भस्मनाच्छन्नं तस्मै बाणं न मुञ्चति ॥ १४ ॥
वधान्निवृत्तं तं भूयो हन्तवेऽत्रिरचोदयत् ।
जहि यज्ञहनं तात महेन्द्रं विबुधाधमम् ॥ १५ ॥
एवं वैन्यसुतः प्रोक्तः त्वरमाणं विहायसा ।
अन्वद्रवद् अभिक्रुद्धो रावणं गृध्रराडिव ॥ १६ ॥

महाराज पृथु तो एकमात्र श्रीहरि को ही अपना प्रभु मानते थे। उनकी कृपा से उस यज्ञानुष्ठान में उनका बड़ा उत्कर्ष हुआ। किन्तु यह बात देवराज इन्द्रको सहन न हुई और उन्होंने उसमें विघ्न डालने की भी चेष्टा की ॥ १० ॥ जिस समय महाराज पृथु अन्तिम यज्ञद्वारा भगवान्‌ यज्ञपति की आराधना कर रहे थे, इन्द्रने ईर्ष्यावश गुप्तरूपसे उनके यज्ञका घोड़ा हर लिया ॥ ११ ॥ इन्द्रने अपनी रक्षाके लिये कवचरूपसे पाखण्डवेष धारण कर लिया था, जो अधर्ममें धर्मका भ्रम उत्पन्न करनेवाला है—जिसका आश्रय लेकर पापी पुरुष भी धर्मात्मा-सा जान पड़ता है ॥ १२ ॥ इस वेषमें वे घोड़ेको लिये बड़ी शीघ्रतासे आकाशमार्गसे जा रहे थे कि उनपर भगवान्‌ अत्रिकी दृष्टि पड़ गयी। उनके कहनेसे महाराज पृथुका महारथी पुत्र इन्द्रको मारनेके लिये उनके पीछे दौड़ा और बड़े क्रोधसे बोला, ‘अरे खड़ा रह ! खड़ा रह’ ॥ १२-१३ ॥ इन्द्र सिरपर जटाजूट और शरीरमें भस्म धारण किये हुए थे। उनका ऐसा वेष देखकर पृथुकुमारने उन्हें मूर्तिमान् धर्म समझा, इसलिये उनपर बाण नहीं छोड़ा ॥ १४ ॥ जब वह इन्द्रपर वार किये बिना ही लौट आया, तब महर्षि अत्रिने पुन: उसे इन्द्रको मारनेके लिये आज्ञा दी—‘वत्स ! इस देवताधम इन्द्रने तुम्हारे यज्ञमें विघ्न डाला है, तुम इसे मार डालो’ ॥ १५ ॥
अत्रि मुनिके इस प्रकार उत्साहित करनेपर पृथुकुमार क्रोधमें भर गया। इन्द्र बड़ी तेजीसे आकाशमें जा रहे थे। उनके पीछे वह इस प्रकार दौड़ा, जैसे रावणके पीछे जटायु ॥ १६ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹🌺🥀 जय श्री हरि: !!🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण हरि: !! हरि: !!

    जवाब देंहटाएं

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - बीसवां अध्याय..(पोस्ट०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  चतुर्थ स्कन्ध – बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२) महाराज पृथु की यज्ञशाला में श्रीविष्णु भगवान्‌ का प...