॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध – इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)
महाराज पृथुका अपनी प्रजाको उपदेश
मैत्रेय उवाच –
मौक्तिकैः कुसुमस्रग्भिः दुकूलैः स्वर्णतोरणैः ।
महासुरभिभिर्धूपैः मण्डितं तत्र तत्र वै ॥ १ ॥
चन्दनागुरुतोयार्द्र रथ्याचत्वरमार्गवत् ।
पुष्पाक्षतफलैस्तोक्मैः लाजैरर्चिर्भिरर्चितम् ॥ २ ॥
सवृन्दैः कदलीस्तम्भैः पूगपोतैः परिष्कृतम् ।
तरुपल्लवमालाभिः सर्वतः समलङ्कृतम् ॥ ३ ॥
प्रजास्तं दीपबलिभिः संभृताशेषमङ्गलैः ।
अभीयुर्मृष्टकन्याश्च मृष्टकुण्डलमण्डिताः ॥ ४ ॥
शङ्खदुन्दुभिघोषेण ब्रह्मघोषेण चर्त्विजाम् ।
विवेश भवनं वीरः स्तूयमानो गतस्मयः ॥ ५ ॥
पूजितः पूजयामास तत्र तत्र महायशाः ।
पौराञ्जानपदान् स्तांस्तान् प्रीतः प्रियवरप्रदः ॥ ॥ ६ ॥
स एवमादीन्यनवद्यचेष्टितः
     कर्माणि भूयांसि महान्महत्तमः ।
कुर्वन्शशासावनिमण्डलं यशः
     स्फीतं निधायारुरुहे परं पदम् ॥ ७ ॥
श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—विदुरजी ! उस समय महाराज पृथुका नगर सर्वत्र मोतियोंकी लडिय़ों, फूलोंकी मालाओं, रंग-बिरंगे वस्त्रों, सोनेके दरवाजों और अत्यन्त सुगन्धित धूपोंसे सुशोभित था ॥ १ ॥ उसकी गलियाँ, चौक, और सडक़ें चन्दन और अरगजेके जलसे सींच दी गयी थीं तथा उसे पुष्प, अक्षत, फल, यवाङ्कुर, खील और दीपक आदि माङ्गलिक द्रव्योंसे सजाया गया था ॥ २ ॥ वह ठौर-ठौरपर रखे हुए फल-फूलके गुच्छोंसे युक्त केलेके खंभों और सुपारीके पौधोंसे बड़ा ही मनोहर जान पड़ता था तथा सब ओर आम आदि वृक्षोंके नवीन पत्तोंकी बंदनवारोंसे विभूषित था ॥ ३ ॥ जब महाराजने नगरमें प्रवेश किया, तब दीपक, उपहार और अनेक प्रकारकी माङ्गलिक सामग्री लिये हुए प्रजाजनोंने तथा मनोहर कुण्डलोंसे सुशोभित सुन्दरी कन्याओंने उनकी अगवानी की ॥ ४ ॥ शङ्ख और दुन्दुभि आदि बाजे बजने लगे, ऋत्विजगण वेदध्वनि करने लगे, वन्दीजनोंने स्तुतिगान आरम्भ कर दिया। यह सब देख और सुनकर भी उन्हें किसी प्रकारका अहंकार नहीं हुआ। इस प्रकार वीरवर पृथुने राजमहलमें प्रवेश किया ॥ ५ ॥ मार्गमें जहाँ-तहाँ पुरवासी और देशवासियोंने उनका अभिनन्दन किया। परम यशस्वी महाराजने भी उन्हें प्रसन्नता- पूर्वक अभीष्ट वर देकर सन्तुष्ट किया ॥ ६ ॥ महाराज पृथु महापुरुष और सभीके पूजनीय थे। उन्होंने इसी प्रकारके अनेकों उदार कर्म करते हुए पृथ्वीका शासन किया और अन्तमें अपने विपुल यशका विस्तार कर भगवान्का परमपद प्राप्त किया ॥ ७ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
🌸🌿🕉️जय श्री हरि: !!🙏
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नारायण नारायण नारायण नारायण