सोमवार, 27 अक्टूबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - बीसवां अध्याय..(पोस्ट०५)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध – बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

महाराज पृथु की यज्ञशाला में श्रीविष्णु भगवान्‌ का प्रादुर्भाव

मैत्रेय उवाच -
इत्यादिराजेन नुतः स विश्वदृक्
     तमाह राजन् मयि भक्तिरस्तु ते ।
दिष्ट्येदृशी धीर्मयि ते कृता यया
     मायां मदीयां तरति स्म दुस्त्यजाम् ॥ ३२ ॥
तत्त्वं कुरु मयादिष्टं अप्रमत्तः प्रजापते ।
मदादेशकरो लोकः सर्वत्राप्नोति शोभनम् ॥ ३३ ॥

मैत्रेय उवाच -
इति वैन्यस्य राजर्षेः प्रतिनन्द्यार्थवद्वचः ।
पूजितोऽनुगृहीत्वैनं गन्तुं चक्रेऽच्युतो मतिम् ॥ ३४ ॥
देवर्षिपितृगन्धर्व सिद्धचारणपन्नगाः ।
किन्नराप्सरसो मर्त्याः खगा भूतान्यनेकशः ॥ ३५ ॥
यज्ञेश्वरधिया राज्ञा वाग्वित्ताञ्जलिभक्तितः ।
सभाजिता ययुः सर्वे वैकुण्ठानुगतास्ततः ॥ ३६ ॥
भगवानपि राजर्षेः सोपाध्यायस्य चाच्युतः ।
हरन्निव मनोऽमुष्य स्वधाम प्रत्यपद्यत ॥ ३७ ॥
अदृष्टाय नमस्कृत्य नृपः सन्दर्शितात्मने ।
अव्यक्ताय च देवानां देवाय स्वपुरं ययौ ॥ ३८ ॥

श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—आदिराज पृथुके इस प्रकार स्तुति करनेपर सर्वसाक्षी श्रीहरिने उनसे कहा, ‘राजन् ! तुम्हारी मुझमें भक्ति हो। बड़े सौभाग्यकी बात है कि तुम्हारा चित्त इस प्रकार मुझमें लगा हुआ है। ऐसा होनेपर तो पुरुष सहजमें ही मेरी उस मायाको पार कर लेता है, जिसको छोडऩा या जिसके बन्धनसे छूटना अत्यन्त कठिन है। अब तुम सावधानीसे मेरी आज्ञाका पालन करते रहो। प्रजापालक नरेश ! जो पुरुष मेरी आज्ञाका पालन करता है, उसका सर्वत्र मङ्गल होता है’ ॥ ३२-३३ ॥
श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—विदुरजी ! इस प्रकार भगवान्‌ने राजर्षि पृथुके सारगर्भित वचनोंका आदर किया। फिर पृथुने उनकी पूजा की और प्रभु उनपर सब प्रकार कृपा कर वहाँसे चलनेको तैयार हुए ॥ ३४ ॥ महाराज पृथुने वहाँ जो देवता, ऋषि, पितर, गन्धर्व, सिद्ध, चारण, नाग, किन्नर, अप्सरा, मनुष्य और पक्षी आदि अनेक प्रकारके प्राणी एवं भगवान्‌के पार्षद आये थे, उन सभीका भगवद्बुद्धिसे भक्तिपूर्वक वाणी और धनके द्वारा हाथ जोडक़र पूजन किया। इसके बाद वे सब अपने-अपने स्थानोंको चले गये ॥ ३५-३६ ॥ भगवान्‌ अच्युत भी राजा पृथु एवं उनके पुरोहितोंका चित्त चुराते हुए अपने धामको सिधारे ॥ ३७ ॥ तदनन्तर अपना स्वरूप दिखाकर अन्तर्धान हुए अव्यक्तस्वरूप देवाधिदेव भगवान्‌को नमस्कार करके राजा पृथु भी अपनी राजधानीमें चले आये ॥ ३८ ॥

इति श्रीमद्‌भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां चतुर्थस्कन्धे पृथुचरिते विंशोऽध्यायः ॥ २० ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌺🌿💟जय श्रीहरि:🙏🙏 श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
    नारायण नारायण हरि: !! हरि: !!

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