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श्रीहरि: #
श्रीगर्ग-संहिता
(
श्रीवृन्दावनखण्ड )
नवाँ
अध्याय ( पोस्ट 06 )
ब्रह्माजीके
द्वारा भगवान् श्रीकृष्णकी स्तुति
वयं
तु गोपदेहेषु संस्थिताश्च शिवादयः ।
सकृत्कृष्णं तु पश्यन्तस्तस्माद्धन्याश्च भारते ॥ ४४ ॥
अहोभाग्यं तु कृष्णस्य मातापित्रोस्तव प्रभो ।
तथा च गोपगोपीनां पूर्णस्त्वं दृश्यसे व्रजे ॥ ४५ ॥
मुक्ताहारः सर्वविश्वोपकारः
सर्वाधारः पातु मां विश्वकारः ।
लीलागारं सूरिकन्याविहारः
क्रीडापारः कृष्णचन्द्रावतारः ॥ ४६ ॥
श्रीकृष्ण वृष्णिकुलपुष्कर नन्दपुत्र
राधापते मदनमोहन देवदेव ।
संमोहितं व्रजपते भुवि तेऽजया मां
गोविन्द गोकुलपते परिपाहि पाहि ॥ ४७
॥
करोति यः कृष्णहरेः प्रदक्षिणां
भवेज्ज्गत्तीर्थफलं च तस्य तु ।
ते कृष्णलोकं सुखदं परात्परं
गोलोकलोकं प्रवरं गमिष्यति ॥ ४८ ॥
श्रीनारद उवाच -
इत्यभिष्टूय गोविन्दं श्रीमद्वृन्दावनेश्वरम् ।
नत्वा त्रिवारं लोकेशश्चकार तु प्रदक्षिणम् ॥ ४९ ॥
तत्र चालक्षितो भूत्वा नेत्रेणाज्ञां ददौ हरिः ।
पुनः प्रणम्य स्वं लोकमात्मभूः प्रत्यपद्यत ॥ ५१ ॥
भगवान्
शंकर आदि हम (इन्द्रियोंके अधिष्ठाता) देवगण ने भारतवासी इन गोपों की देह में स्थित होकर एक बार भी श्रीकृष्णका
दर्शन कर लिया, अतः हम धन्य हो गये। श्रीकृष्ण ! आपके माता-पिता एवं गोप- गोपियों का तो कितना अनिर्वचनीय सौभाग्य है, जो व्रजमें आपके पूर्णरूप का दर्शन कर रहे हैं ॥ ४४-४५ ॥
सम्पूर्ण
विश्व का उपकार करनेवाले, मुक्ताहार धारण करने
वाले, विश्व के रचयिता, सर्वाधार, लीलाके धाम, रवितनया
यमुना में विहार करनेवाले, क्रीडापरायण, श्रीकृष्णचन्द्र का अवतार ग्रहण करनेवाले प्रभु मेरी रक्षा करें। वृष्णिकुलरूप सरोवरके
कमलस्वरूप नन्द- नन्दन, राधापति, देव-देव, मदनमोहन, व्रजपति, गोकुलपति, गोविन्द मुझ
माया से मोहित की रक्षा करें। जो व्यक्ति
श्रीकृष्ण की प्रदक्षिणा करता है, उसको जगत्
के सम्पूर्ण तीर्थों की यात्रा का
फल प्राप्त होता है वह आपके सुखदायक परात्पर 'गोलोक' नामक लोक को
जाता है ॥ ४६–४८ ॥
नारदजी
कहने लगे- लोकपति लोक-पितामह ब्रह्मा ने इस प्रकार सुन्दर वृन्दावन के अधिपति गोविन्द का स्तवन करके प्रणाम करते
हुए उनकी तीन बार प्रदक्षिणा की और कुछ देर के लिये अदृश्य होकर
गोवत्स तथा गोप-बालकों को वरदान देकर लौट जाने
के लिये अनुमति की प्रार्थना की ।। तदनन्तर श्रीहरिने
नेत्रोंके संकेतसे उनको जानेका आदेश दिया। लोकपितामह ब्रह्मा भी पुनः प्रणाम करके अपने
लोकको चले गये ॥ ४९-५१ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से