**श्री परमात्मने नम:**
जगद्गुरु भगवान् की उदारता (पोस्ट 01)
भगवान्में अनन्त गुण हैं, जिनका कोई पार नहीं पा सकता । आजतक भगवान्के गुणोंका जितना शास्त्रमें वर्णन हुआ है, जितना महात्माओंने वर्णन किया है, वह सब-का-सब मिलकर भी अधूरा है । भगवान्के परम भक्त गोस्वामीजी महाराज भी कहते हैं‒ ‘रामु न सकहिं नाम गुन गाई’ (मानस, बालकाण्ड २६/४)। सन्तोंकी वाणीमें भी आया है कि अपनी शक्तिको खुद भगवान् भी नहीं जानते !ऐसे अनन्त गुणोंवाले भगवान्में कम-से-कम तीन गुण मुख्य हैं‒सर्वज्ञता, सर्वसमर्थता और सर्वसुहृत्ता । तात्पर्य है कि भगवान्के समान कोई सर्वज्ञ नहीं है, कोई सर्वसमर्थ नहीं है और कोई सर्वसुहृद् (परम दयालु) नहीं है । ऐसे भगवान्के रहते हुए भी आप दुःख पा रहे हैं, आपकी मुक्ति नहीं हो रही है तो क्या गुरु आपको मुक्त कर देगा ? क्या गुरु भगवान्से भी अधिक सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और दयालु है ? कोरी ठगाईके सिवाय कुछ नहीं होगा ! जबतक आपके भीतर अपने कल्याणकी लालसा जाग्रत नहीं होगी, तबतक भगवान् भी आपका कल्याण नहीं कर सकते, फिर गुरु कैसे कर देगा ?
आपको गुरुमें, सन्त-महात्मामें जो विशेषता दिखती है, वह भी उनकी अपनी विशेषता नहीं है, प्रत्युत भगवान्से आयी हुई और आपकी मानी हुई है ।जैसे कोई भी मिठाई बनायें, उसमें मिठास चीनीकी ही होती है, ऐसे ही जहाँ भी विशेषता दीखती है, वह सब भगवान्की ही होती है । भगवान्ने गीतामें कहा भी है‒
यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा ।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम् ॥
.............(१०/४१)
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम् ॥
.............(१०/४१)
‘जो-जो ऐश्वर्ययुक्त, शोभायुक्त और बलयुक्त प्राणी तथा पदार्थ है, उस-उसको तुम मेरे ही तेज (योग अर्थात् सामर्थ्य) के अंशसे उत्पन्न हुई समझो ।’
भगवान्का विरोध करनेवाले राक्षसोंको भी भगवान्से ही बल मिलता है तो क्या भगवान्का भजन करनेवालोंको भगवान्से बल नहीं मिलेगा ? आप भगवान्के सम्मुख हो जाओ तो करोड़ों जन्मोंके पाप नष्ट हो जायँगे, पर आप सम्मुख ही नहीं होंगे तो पाप कैसे नष्ट होंगे ? भगवान् अपने शत्रुओंको भी शक्ति देते हैं, प्रेमियोंको भी शक्ति देते हैं और उदासीनोंको भी शक्ति देते हैं । भगवान्की रची हुई पृथ्वी दुष्ट-सज्जन, आस्तिक-नास्तिक, पापी-पुण्यात्मा सबको रहनेका स्थान देती है । उनका बनाया हुआ अन्न सबकी भूख मिटाता है । उनका बनाया हुआ जल सबकी प्यास बुझाता है । उनका बनाया हुआ पवन सबको श्वास देता है । दुष्ट-से-दुष्ट, पापी-से-पापीके लिये भी भगवान्की दयालुता समान है । हम घरमें बिजलीका एक लट्टू भी लगाते हैं तो उसका किराया देना पड़ता है, पर भगवान्के बनाये सूर्य और चन्द्रने कभी किराया माँगा है ? पानीका एक नल लगा लें तो रुपया लगता है, पर भगवान्की बनायी नदियाँ रात-दिन बह रही हैं । क्या किसीने उसका रुपया माँगा है ? रहनेके लिये थोड़ी-सी जमीन भी लें तो उसका रुपया देना पड़ता है, पर भगवान्ने रहनेके लिये इतनी बड़ी पृथ्वी दे दी । क्या उसका किराया माँगा है ? अगर उसका किराया माँगा तो किसमें देनेकी ताकत है ? जिसकी बनायी हुई सृष्टि भी इतनी उदार है, वह खुद कितना उदार होगा !
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
शेष आगामी पोस्ट में ......
.........गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘क्या गुरु बिना मुक्ति नहीं ?’ पुस्तक से
.........गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘क्या गुरु बिना मुक्ति नहीं ?’ पुस्तक से
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