☼ श्रीदुर्गादेव्यै नमो नम: ☼
अथ श्रीदुर्गासप्तशती
श्रीदुर्गाद्वात्रिंशत्-नाममाला (पोस्ट ०३)
कोई शत्रुओं से पीड़ित हो अथवा दुर्भेद्य बन्धन में पड़ा हो, इन बत्तीस नामों के
पाठमात्र से संकट से छुटकारा पा जाता है। इस में तनिक भी संदेह के लिये स्थान नहीं
है। यदि राजा क्रोध में भरकर वध के लिये अथवा और किसी कठोर दण्ड के लिये आज्ञा दे
दे या युद्ध में शत्रुओं द्वारा मनुष्य घिर जाय अथवा वन में व्याघ्र आदि हिंसक
जन्तुओंके चंगुल में फँस जाय तो इन बत्तीस नामोंका एक सौ आठ बार पाठमात्र करनेसे
वह सम्पूर्ण भयोंसे मुक्त हो जाता है। विपत्तिके समय इसके समान भयनाशक उपाय दूसरा
नहीं है। देवगण! इस नाममालाका पाठ करनेवाले मनुष्योंकी कभी कोई हानि नहीं होती।
अभक्त,
नास्तिक और शठ मनुष्य को
इसका उपदेश नहीं देना चाहिये। जो भारी विपत्ति में पड़नेपर भी इस नामावलीका हजार, दस हजार अथवा लाख बार पाठ करता है, स्वयं करता या ब्राह्मणों से कराता है, वह सब प्रकार की आपत्तियों से मुक्त हो जाता है। सिद्ध
अग्नि में मधुमिश्रित सफेद तिलों से इन नामों
द्वारा लाख बार हवन करे तो मनुष्य सब विपत्तियों से छूट जाता है। इस नाममालाका
पुरश्चरण तीस हजार का है। पुरश्चरणपूर्वक पाठ करने से मनुष्य इसके द्वारा सम्पूर्ण
कार्य सिद्ध कर सकता है। मेरी सुन्दर मिट्टीकी अष्टभुजा मूर्ति बनावे, आठों भुजाओं में क्रमशः गदा, खड्ग,
त्रिशूल, बाण, धनुष, कमल, खेट ( ढाल ) और मुद्गर धारण करावे। मूर्तिके मस्तकमें
चन्द्रमाका चिह्न हो,
उसके तीन नेत्र हों, उसे लाल वस्त्र पहनाया गया हो, वह सिंह के कंधेपर सवार हो और शूलसे महिषासुरका वध कर रही हो, इस प्रकार की प्रतिमा बनाकर नाना प्रकारकी सामग्रियोंसे
भक्तिपूर्वक मेरा पूजन करे। मेरे उक्त नामोंसे लाल कनेर के फूल चढ़ाते हुए सौ बार
पूजा करे और मन्त्र-जप करते हुए पूए से हवन करे। भाँति-भाँतिके उत्तम पदार्थ भोग लगावे। इस प्रकार करनेसे मनुष्य असाध्य
कार्यको भी सिद्ध कर लेता है। जो मानव प्रतिदिन मेरा भजन करता है, वह कभी विपत्ति में नहीं पड़ता।
देवताओं से ऐसा कहकर जगदम्बा वहीं अन्तर्धान हो गयीं। दुर्गा जी के
इस उपाख्यान को जो सुनते हैं, उन पर कोई
विपत्ति नहीं आती ।
इति श्रीदुर्गाद्वात्रिंशत्-नाममाला
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से
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