।। श्रीहरिः ।।
नाम-जपकी विधि (पोस्ट ०१)
नाम-जपकी खास विधि क्या है ?
खास विधि है कि भगवान्के होकर भगवान् के नाम का जप करें, ‘होहि राम को नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु’ । अब थोड़ी
दूसरी बात बताते हैं । भगवान् के नामका जप करो; पर जप के
साथ में प्रभु के स्वरूप का चिन्तन भी होना चाहिये । जैसे‒‘गंगाजी’
का नाम लेते हैं तो गंगाजी की धारा दिखती है कि ऐसे बह रही है । ‘गौमाता’ का नाम लेते हैं तो गाय का रूप दिखता है ।
ऐसे ‘ब्राह्मण’ का नाम लेते हैं तो
ब्राह्मणरूपी व्यक्ति दिखता है । मनमें एक स्वरूप आता है । ऐसे ‘राम’ कहते ही धनुषधारी राम दीखने चाहिये मन से । इस
प्रकार नाम लेते हुए मन से भगवान् के स्वरूप का चिन्तन करो । यह खास विधि है ।
पातंजलयोगदर्शन में लिखा है‒‘तज्जपस्तदर्थभावनम्’, ‘तस्य वाचकः प्रणवः’ भगवान् के नाम का जप करना और
उसके अर्थ का चिन्तन करना अर्थात् नाम लेते जाओ और उसको याद करते जाओ ।
श्रीकृष्ण के भक्त हों तो उनके
चरणों की शरण होकर,‘श्रीकृष्णः शरणं मम’
इस मन्त्रको जपते हुए साथ-साथ स्वरूपको याद करते जाओ । नाम-जप की यह
खास विधि है । एक विधि तो उसके होकर नाम जपना और दूसरी विधि-नाम जपते हुए उसके
स्वरूप का ध्यान करते रहना । कहीं भूल होते ही ‘हे नाथ ! हे
नाथ !!’ पुकारो । ‘हे प्रभो ! बचाओ,मैं तो भूल गया । मेरा मन और जगह चला गया, हे नाथ !
बचाओ ।’ भगवान्से ऐसी प्रार्थना करो तो भगवान् मदद करेंगे ।
उनकी मदद से जो काम होगा, वह काम आप अपनी शक्तिसे कर नहीं
सकोगे । इस वास्ते भगवान् के नाम का जप और उनके स्वरूप का ध्यान‒ये दोनों साथमें रहें ।
“ओमित्येकाक्षरं
ब्रह्म व्याहरन् मामनुस्मरन् ।“
………………(गीता ८ । १३)
‘ॐ’ --इस एक अक्षर का उच्चारण करे और मेरा स्मरण करे । यह जगह-जगह बात आती है ।
इस वास्ते भगवान् के नाम-जप के साथ भगवान् के स्वरूप की भी याद रहे ।
नाम-जप दिखावटीपन में न चला जाय
अर्थात् मैं नाम जपता हूँ तो लोग मेरे को भक्त मानें,
अच्छा मानें, लोग मेरे को देखें‒यह भाव बिलकुल नहीं होना चाहिये । यह भाव होगा तो नाम की बिक्री हो जायगी
। नामका पूरा फल नहीं मिलेगा; क्योंकि आपने नाम को
मान-बडाईमें खर्च कर दिया । इस वास्ते दिखावटीपन नहीं होना चाहिये नाम-जपमें ।
नाम-जप भीतरसे होना चाहिये‒लगनपूर्वक । लौकिक धन को भी लोग
दिखाते नहीं । उसको भी तिजोरी में बंद रखते हैं, तो लौकिक
धन-जैसा भी यह धन नहीं है क्या ? जो लोगोंको दिखाया जाय ।
लोगों को पता लगे तो क्या भजन किया ? गुप्तरीति से करे,
दिखावटीपन बिलकुल न आवे । नाम-जप भीतर-ही-भीतर करते रहें ।
एकान्तमें करते रहें,मन-ही-मन करते रहें और मन-ही-मनसे
पुकारें, लोगों को दिखाने के लिये नहीं । लोग देख लें तो
उसमें शर्म आनी चाहिये कि मेरी गलती हो गयी । लोगों को पता लग गया ।
नारायण ! नारायण !!
(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास
जी की ‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे
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