गुरुवार, 27 जून 2019

नाम-जपकी विधि (पोस्ट ०१)



।। श्रीहरिः ।।

नाम-जपकी विधि (पोस्ट ०१)

नाम-जपकी खास विधि क्या है ? खास विधि है कि भगवान्‌के होकर भगवान्‌ के नाम का जप करें, ‘होहि राम को नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु। अब थोड़ी दूसरी बात बताते हैं । भगवान्‌ के नामका जप करो; पर जप के साथ में प्रभु के स्वरूप का चिन्तन भी होना चाहिये । जैसे‒‘गंगाजीका नाम लेते हैं तो गंगाजी की धारा दिखती है कि ऐसे बह रही है । गौमाताका नाम लेते हैं तो गाय का रूप दिखता है । ऐसे ब्राह्मणका नाम लेते हैं तो ब्राह्मणरूपी व्यक्ति दिखता है । मनमें एक स्वरूप आता है । ऐसे रामकहते ही धनुषधारी राम दीखने चाहिये मन से । इस प्रकार नाम लेते हुए मन से भगवान्‌ के स्वरूप का चिन्तन करो । यह खास विधि है । पातंजलयोगदर्शन में लिखा है‒‘तज्जपस्तदर्थभावनम्’, ‘तस्य वाचकः प्रणवःभगवान्‌ के नाम का जप करना और उसके अर्थ का चिन्तन करना अर्थात् नाम लेते जाओ और उसको याद करते जाओ ।

श्रीकृष्ण के भक्त हों तो उनके चरणों की शरण होकर,‘श्रीकृष्णः शरणं ममइस मन्त्रको जपते हुए साथ-साथ स्वरूपको याद करते जाओ । नाम-जप की यह खास विधि है । एक विधि तो उसके होकर नाम जपना और दूसरी विधि-नाम जपते हुए उसके स्वरूप का ध्यान करते रहना । कहीं भूल होते ही हे नाथ ! हे नाथ !!पुकारो । हे प्रभो ! बचाओ,मैं तो भूल गया । मेरा मन और जगह चला गया, हे नाथ ! बचाओ ।भगवान्‌से ऐसी प्रार्थना करो तो भगवान् मदद करेंगे । उनकी मदद से जो काम होगा, वह काम आप अपनी शक्तिसे कर नहीं सकोगे । इस वास्ते भगवान्‌ के नाम का जप और उनके स्वरूप का ध्यानये दोनों साथमें रहें ।

ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन् मामनुस्मरन् ।
………………(गीता ८ । १३)

’ --इस एक अक्षर का उच्चारण करे और मेरा स्मरण करे । यह जगह-जगह बात आती है । इस वास्ते भगवान्‌ के नाम-जप के साथ भगवान्‌ के स्वरूप की भी याद रहे ।

नाम-जप दिखावटीपन में न चला जाय अर्थात् मैं नाम जपता हूँ तो लोग मेरे को भक्त मानें, अच्छा मानें, लोग मेरे को देखेंयह भाव बिलकुल नहीं होना चाहिये । यह भाव होगा तो नाम की बिक्री हो जायगी । नामका पूरा फल नहीं मिलेगा; क्योंकि आपने नाम को मान-बडाईमें खर्च कर दिया । इस वास्ते दिखावटीपन नहीं होना चाहिये नाम-जपमें । नाम-जप भीतरसे होना चाहियेलगनपूर्वक । लौकिक धन को भी लोग दिखाते नहीं । उसको भी तिजोरी में बंद रखते हैं, तो लौकिक धन-जैसा भी यह धन नहीं है क्या ? जो लोगोंको दिखाया जाय । लोगों को पता लगे तो क्या भजन किया ? गुप्तरीति से करे, दिखावटीपन बिलकुल न आवे । नाम-जप भीतर-ही-भीतर करते रहें । एकान्तमें करते रहें,मन-ही-मन करते रहें और मन-ही-मनसे पुकारें, लोगों को दिखाने के लिये नहीं । लोग देख लें तो उसमें शर्म आनी चाहिये कि मेरी गलती हो गयी । लोगों को पता लग गया ।

नारायण ! नारायण !!

(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की भगवन्नामपुस्तकसे



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