शनिवार, 21 सितंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – सातवाँ अध्याय..(पोस्ट११)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – सातवाँ अध्याय..(पोस्ट११)

समुद्रमन्थन का आरम्भ और भगवान्‌ शङ्कर का विषपान

न ते गिरित्राखिललोकपाल-
विरिञ्चवैकुण्ठसुरेन्द्र गम्यम्
ज्योतिः परं यत्र रजस्तमश्च
सत्त्वं न यद्ब्रह्म निरस्तभेदम् ॥ ३१
कामाध्वरत्रिपुरकालगराद्यनेक
भूतद्रुहः क्षपयतः स्तुतये न तत्ते
यस्त्वन्तकाल इदमात्मकृतं स्वनेत्र
वह्निस्फुलिङ्गशिखया भसितं न वेद ॥ ३२

भगवन् ! आपका परम ज्योतिर्मय स्वरूप स्वयं ब्रह्म है। उसमें न तो रजोगुण, तमोगुण एवं सत्त्वगुण हैं और न किसी प्रकारका भेदभाव ही। आपके उस स्वरूपको सारे लोकपालयहाँतक कि ब्रह्मा, विष्णु और देवराज इन्द्र भी नहीं जान सकते ॥ ३१ ॥ आपने कामदेव, दक्षके यज्ञ, त्रिपुरासुर और कालकूट विष (जिसको आप अभी-अभी अवश्य पी जायँगे) और अनेक जीवद्रोही असुरोंको नष्ट कर दिया है। परंतु यह कहनेसे आपकी कोई स्तुति नहीं होती। क्योंकि प्रलयके समय आपका बनाया हुआ यह विश्व आपके ही नेत्रसे निकली हुई आगकी चिनगारी एवं लपटसे जलकर भस्म हो जाता है और आप इस प्रकार ध्यानमग्न रहते हैं कि आपको इसका पता ही नहीं चलता ॥ ३२ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से





5 टिप्‍पणियां:

  1. 🌹🌹🌹🕉️ हर हर श्री महादेव शम्भो 🙏🙏🙏

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  2. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  3. विवेक स्वामी7 जून 2023 को 1:47 pm बजे

    जय श्री कृष्ण 💐🙏🏻💐

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  4. 💐🌿🌸जय श्री हरि: !!🙏🙏
    जय हो उमापति नीलकंठ महादेव

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