शुक्रवार, 15 नवंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – तेईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – तेईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

बलि का बन्धन से छूटकर सुतल लोक को जाना

सर्वं एतन्मयाख्यातं भवतः कुलनन्दन ।
उरुक्रमस्य चरितं श्रोतॄणां अघमोचनम् ॥ २८ ॥
पारं महिम्न उरुविक्रमतो गृणानो
     यः पार्थिवानि विममे स रजांसि मर्त्यः ।
किं जायमान उत जात उपैति मर्त्य
     इत्याह मन्त्रदृगृषिः पुरुषस्य यस्य ॥ २९ ॥
य इदं देवदेवस्य हरेरद्‍भुतकर्मणः ।
अवतारानुचरितं श्रृण्वन्याति परां गतिम् ॥ ३० ॥
क्रियमाणे कर्मणीदं दैवे पित्र्येऽथ मानुषे ।
यत्र यत्रानुकीर्त्येत तत्तेषां सुकृतं विदुः ॥ ३१ ॥

परीक्षित्‌ ! तुम्हें मैंने भगवान्‌ की यह सब लीला सुनायी। इससे सुननेवालों के सारे पाप छूट जाते हैं ॥ २८ ॥ भगवान्‌ की लीलाएँ अनन्त हैं, उनकी महिमा अपार है। जो मनुष्य उसका पार पाना चाहता है, वह मानो पृथ्वीके परमाणुओंको गिन डालना चाहता है। भगवान्‌के सम्बन्धमें मन्त्रद्रष्टा महर्षि वसिष्ठने वेदोंमें कहा है कि ऐसा पुरुष न कभी हुआ, न है और न होगा जो भगवान्‌की महिमाका पार पा सके॥ २९ ॥ देवताओंके आराध्यदेव अद्भुतलीलाधारी वामनभगवान्‌के अवतार-चरित्रका जो श्रवण करता है, उसे परम गतिकी प्राप्ति होती है ॥ ३० ॥ देवयज्ञ, पितृयज्ञ और मनुष्ययज्ञ किसी भी कर्मका अनुष्ठान करते समय जहाँ-जहाँ भगवान्‌की इस लीलाका कीर्तन होता है, वह कर्म सफलतापूर्वक सम्पन्न हो जाता है। यह बड़े-बड़े महात्माओंका अनुभव है ॥ ३१ ॥

इति श्रीमद्‌भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
अष्टमस्कन्धे वामनावतारचरिते त्रयोविंशोऽध्यायः ॥ २३ ॥

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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