॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – चौबीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)
भगवान् के मत्स्यावतार की कथा
एवं विमोहितस्तेन वदता वल्गुभारतीम् ।
तमाह को भवान् अस्मान् मत्स्यरूपेण मोहयन् ॥ २५ ॥
नैवं वीर्यो जलचरो दृष्टोऽस्माभिः श्रुतोऽपि वा ।
यो भवान् योजनशतं अह्नाभिव्यानशे सरः ॥ २६ ॥
नूनं त्वं भगवान् साक्षात् हरिर्नारायणोऽव्ययः ।
अनुग्रहाय भूतानां धत्से रूपं जलौकसाम् ॥ २७ ॥
नमस्ते पुरुषश्रेष्ठ स्थित्युत्पत्त्यप्ययेश्वर ।
भक्तानां नः प्रपन्नानां मुख्यो ह्यात्मगतिर्विभो ॥ २८ ॥
सर्वे लीलावतारास्ते भूतानां भूतिहेतवः ।
ज्ञातुमिच्छाम्यदो रूपं यदर्थं भवता धृतम् ॥ २९ ॥
न तेऽरविन्दाक्ष पदोपसर्पणं
मृषा
भवेत्सर्वसुहृत् प्रियात्मनः ।
यथेतरेषां पृथगात्मनां सतां
अदीदृशो
यद्वपुरद्भुतं हि नः ॥ ३० ॥
मत्स्य भगवान् की यह मधुर वाणी सुनकर राजा सत्यव्रत
मोहमुग्ध हो गये। उन्होंने कहा— ‘मत्स्य का रूप
धारण करके मुझे मोहित करनेवाले आप कौन हैं ? ॥ २५ ॥ आपने एक ही दिनमें चार सौ कोस के विस्तारका सरोवर घेर लिया। आजतक ऐसी
शक्ति रखनेवाला जलचर जीव तो न मैंने कभी देखा था और न सुना ही था ॥ २६ ॥ अवश्य ही
आप साक्षात् सर्वशक्तिमान् सर्वान्तर्यामी अविनाशी श्रीहरि हैं। जीवोंपर अनुग्रह
करनेके लिये ही आपने जलचरका रूप धारण किया है ॥ २७ ॥ पुरुषोत्तम ! आप जगत्की
उत्पत्ति,
स्थिति और प्रलयके स्वामी हैं। आपको मैं नमस्कार करता हूँ।
प्रभो ! हम शरणागत भक्तोंके लिये आप ही आत्मा और आश्रय हैं ॥ २८ ॥ यद्यपि आपके सभी
लीलावतार प्राणियोंके अभ्युदयके लिये ही होते हैं, तथापि मैं यह जानना चाहता हूँ कि आपने यह रूप किस उद्देश्यसे ग्रहण किया है ॥
२९ ॥ कमलनयन प्रभो ! जैसे देहादि अनात्मपदार्थों में अपनेपन का अभिमान करनेवाले
संसारी पुरुषोंका आश्रय व्यर्थ होता है, उस प्रकार आपके चरणोंकी शरण तो व्यर्थ हो नहीं सकती; क्योंकि आप सबके अहैतुक प्रेमी, परम प्रियतम और आत्मा हैं। आपने इस समय जो रूप धारण करके
हमें दर्शन दिया है,
यह बड़ा ही अद्भुत है ॥ ३० ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंOm namo bhagwate vasudevay namah.
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम जय हो प्रभु जय हो
जवाब देंहटाएं💖🥀💖जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण