गुरुवार, 19 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)

भगवान्‌ श्रीराम की लीलाओं का वर्णन

श्रीशुक उवाच ।
स्वानां विभीषणश्चक्रे कोसलेन्द्रानुमोदितः ।
पितृमेधविधानेन यदुक्तं सांपरायिकम् ॥ २९ ॥
ततो ददर्श भगवान् अशोकवनिकाश्रमे ।
क्षामां स्वविरहव्याधिं शिंशपामूलमास्थिताम् ॥ ३० ॥
रामः प्रियतमां भार्यां दीनां वीक्ष्यान्वकंपत ।
आत्मसंदर्शनाह्लाद विकसन् मुखपंकजाम् ॥ ३१ ॥
आरोप्यारुरुहे यानं भ्रातृभ्यां हनुमद्युतः ।
विभीषणाय भगवान् दत्त्वा रक्षोगणेशताम् ॥ ३२ ॥
लंकामायुश्च कल्पान्तं ययौ चीर्णव्रतः पुरीम् ।
अवकीर्यमाणः कुसुमैः लोकपालार्पितैः पथि ॥ ३३ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! कोसलाधीश भगवान्‌ श्रीरामचन्द्रजीकी आज्ञासे विभीषण ने अपने स्वजन-सम्बन्धियों का पितृयज्ञ की विधि से शास्त्रके अनुसार अन्त्येष्टिकर्म किया ॥ २९ ॥ इसके बाद भगवान्‌ श्रीराम ने अशोकवाटिका के आश्रममें अशोकवृक्षके नीचे बैठी हुई श्रीसीताजी को देखा। वे उन्हींके विरहकी व्याधिसे पीडि़त एवं अत्यन्त दुर्बल हो रही थीं ॥ ३० ॥ अपनी प्राणप्रिया अर्धाङ्गिनी श्रीसीताजी को अत्यन्त दीन-अवस्थामें देखकर श्रीरामका हृदय प्रेम और कृपासे भर आया। इधर भगवान्‌ का दर्शन पाकर सीताजीका हृदय प्रेम और आनन्दसे परिपूर्ण हो गया, उनका मुखकमल खिल उठा ॥ ३१ ॥ भगवान्‌ ने विभीषण को राक्षसोंका स्वामित्व, लङ्कापुरीका राज्य और एक कल्पकी आयु दी और इसके बाद पहले सीताजीको विमानपर बैठाकर अपने दोनों भाई लक्ष्मण तथा सुग्रीव एवं सेवक हनूमान् जी के साथ स्वयं भी विमानपर सवार हुए। इस प्रकार चौदह वर्षका व्रत पूरा हो जानेपर उन्होंने अपने नगरकी यात्रा की। उस समय मार्गमें ब्रह्मा आदि लोकपालगण उनपर बड़े प्रेमसे पुष्पोंकी वर्षा कर रहे थे ॥ ३२-३३ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से





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