॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)
भगवान् श्रीराम की लीलाओं का
वर्णन
रक्षःस्वसुर्व्यकृत रूपमशुद्धबुद्धेः ।
तस्याः खरत्रिशिरदूषणमुख्यबन्धून् ॥
जघ्ने चतुर्दशसहस्रमपारणीय ।
कोदण्डपाणिरटमान उवास कृच्छ्रम् ॥ ९ ॥
सीताकथाश्रवणदीपितहृच्छयेन ।
सृष्टं विलोक्य नृपते दशकन्धरेण ॥
जघ्नेऽद्भुतैण वपुषाऽऽश्रमतोऽपकृष्टो ।
मारीचमाशु विशिखेन यथा कमुग्रः ॥ १० ॥
रक्षोऽधमेन वृकवद् विपिनेऽसमक्षं ।
वैदेहराजदुहितर्यपयापितायाम् ॥
भ्रात्रा वने कृपणवत्प्रियया वियुक्तः ।
स्त्रीसङ्गिनां गतिमिति प्रथयंश्चचार ॥ ११ ॥
वन में पहुँचकर भगवान् ने राक्षसराज रावणकी बहिन शूर्पणखा को
विरूप कर दिया। क्योंकि उसकी बुद्धि बहुत ही कलुषित, कामवासनाके कारण अशुद्ध थी। उसके पक्षपाती खर, दूषण,
त्रिशिरा आदि प्रधान-प्रधान भाइयोंको—जो
संख्यामें चौदह हजार थे—हाथमें महान् धनुष लेकर भगवान्
श्रीरामने नष्ट कर डाला, और अनेक प्रकारकी कठिनाइयोंसे
परिपूर्ण वनमें वे इधर-उधर विचरते हुए निवास करते रहे ॥ ९ ॥ परीक्षित् ! जब
रावणने सीताजीके रूप, गुण, सौन्दर्य
आदिकी बात सुनी तो उसका हृदय कामवासनासे आतुर हो गया। उसने अद्भुत हरिनके वेषमें
मारीच को उनकी पर्णकुटीके पास भेजा। वह धीरे-धीरे भगवान्को वहाँसे दूर ले गया।
अन्तमें भगवान् ने अपने बाणसे उसे बात-की-बातमें वैसे ही मार डाला, जैसे दक्षप्रजापतिको वीरभद्र ने मारा था ॥ १० ॥ जब भगवान् श्रीराम
जंगलमें दूर निकल गये, तब (लक्ष्मणकी अनुपस्थितिमें) नीच
राक्षस रावणने भेडिय़ेके समान विदेहनन्दिनी सुकुमारी श्रीसीताजीको हर लिया। तदनन्तर
वे अपनी प्राणप्रिया सीताजीसे बिछुडक़र अपने भाई लक्ष्मणके साथ वन-वनमें दीनकी
भाँति घूमने लगे। और इस प्रकार उन्होंने यह शिक्षा दी कि ‘जो
स्त्रियोंमें आसक्ति रखते हैं, उनकी यही गति होती है’
॥ ११ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंJay shree krishna
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏
जवाब देंहटाएं🌹🥀🎋 जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंजय श्री राम जय जय सियाराम
नारायण नारायण नारायण नारायण