मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण नवम स्कन्ध –दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

भगवान्‌ श्रीराम की लीलाओं का वर्णन

रक्षःस्वसुर्व्यकृत रूपमशुद्धबुद्धेः ।
तस्याः खरत्रिशिरदूषणमुख्यबन्धून् ॥
जघ्ने चतुर्दशसहस्रमपारणीय ।
कोदण्डपाणिरटमान उवास कृच्छ्रम् ॥ ९ ॥
सीताकथाश्रवणदीपितहृच्छयेन ।
सृष्टं विलोक्य नृपते दशकन्धरेण ॥
जघ्नेऽद्‍भुतैण वपुषाऽऽश्रमतोऽपकृष्टो ।
मारीचमाशु विशिखेन यथा कमुग्रः ॥ १० ॥
रक्षोऽधमेन वृकवद् विपिनेऽसमक्षं ।
वैदेहराजदुहितर्यपयापितायाम् ॥
भ्रात्रा वने कृपणवत्प्रियया वियुक्तः ।
स्त्रीसङ्‌गिनां गतिमिति प्रथयंश्चचार ॥ ११ ॥

वन में पहुँचकर भगवान्‌ ने राक्षसराज रावणकी बहिन शूर्पणखा को विरूप कर दिया। क्योंकि उसकी बुद्धि बहुत ही कलुषित, कामवासनाके कारण अशुद्ध थी। उसके पक्षपाती खर, दूषण, त्रिशिरा आदि प्रधान-प्रधान भाइयोंकोजो संख्यामें चौदह हजार थेहाथमें महान् धनुष लेकर भगवान्‌ श्रीरामने नष्ट कर डाला, और अनेक प्रकारकी कठिनाइयोंसे परिपूर्ण वनमें वे इधर-उधर विचरते हुए निवास करते रहे ॥ ९ ॥ परीक्षित्‌ ! जब रावणने सीताजीके रूप, गुण, सौन्दर्य आदिकी बात सुनी तो उसका हृदय कामवासनासे आतुर हो गया। उसने अद्भुत हरिनके वेषमें मारीच को उनकी पर्णकुटीके पास भेजा। वह धीरे-धीरे भगवान्‌को वहाँसे दूर ले गया। अन्तमें भगवान्‌ ने अपने बाणसे उसे बात-की-बातमें वैसे ही मार डाला, जैसे दक्षप्रजापतिको वीरभद्र ने मारा था ॥ १० ॥ जब भगवान्‌ श्रीराम जंगलमें दूर निकल गये, तब (लक्ष्मणकी अनुपस्थितिमें) नीच राक्षस रावणने भेडिय़ेके समान विदेहनन्दिनी सुकुमारी श्रीसीताजीको हर लिया। तदनन्तर वे अपनी प्राणप्रिया सीताजीसे बिछुडक़र अपने भाई लक्ष्मणके साथ वन-वनमें दीनकी भाँति घूमने लगे। और इस प्रकार उन्होंने यह शिक्षा दी कि जो स्त्रियोंमें आसक्ति रखते हैं, उनकी यही गति होती है॥ ११ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



4 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  2. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏

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  3. 🌹🥀🎋 जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
    जय श्री राम जय जय सियाराम
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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