शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

कामना और आवश्यकता (पोस्ट 07)

 

।। श्रीहरिः ।।

 


कामना और आवश्यकता
(पोस्ट 07)

 

हम नया-नया पकड़ते रहते हैं और भगवान् छुड़ाते रहते हैं ! यह भगवान्‌ की अत्यन्त कृपालुता है ! वे हमारा क्रियात्मक आवाहन करते हैं कि तुम संसार में न फँसकर मेरी तरफ चले आओ । अगर हम संसार को पकड़ना छोड़ दें तो महान् आनन्द मिल जायगा । जब कभी हमें शान्ति मिलेगी तो वह कामनाओं के त्याग से ही मिलेगी‒‘त्यागाच्छान्तिरनन्तरम् (गीता १२ । १२) ।

 

दूसरों की सेवा करने से बड़ी सुगमता से इच्छा का त्याग होता है । गरीब, अपाहिज, बीमार, बालक, विधवा, गाय आदि की सेवा करनेसे इच्छाएँ मिटती हैं । एक साधु कहते थे कि जब मेरा विवाह हुआ था, एक दिन मेरे को एक आम मिला । पर मैंने वह आम अपनी स्त्री को दे दिया । इससे मेरे भीतर यह विचार उठा कि वह आम मैं खुद भी खा सकता था, पर मैंने खुद न खाकर स्त्रीको क्यों दिया ? इससे मेरेको यह शिक्षा मिली कि दूसरे को सुख पहुँचानेसे अपने सुखकी इच्छा मिटती है । इसका नाम कर्मयोगहै । संसार की इच्छा शरीर की प्रधानता से होती है । अतः विवेक-विचारपूर्वक शरीर के द्वारा दूसरों की सेवा करने से, दूसरों को सुख पहुँचाने से इच्छा सुगमतापूर्वक मिट जाती है । सृष्टि की रचना ही इस ढंग से हुई है कि एक-दूसरेको सुख पहुँचाने से, सेवा करने से कल्याण की प्राप्ति हो जाती है‒‘परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ (गीता ३ । ११) । शरीर संसार से ही पैदा हुआ है, संसा रसे ही पला है, संसार से ही शिक्षित हुआ है, संसार में ही रहता है और संसार में ही लीन हो जाता है अर्थात् संसार के सिवाय शरीर की स्वतन्त्र सत्ता नहीं है । अतः संसार से मिले हुएको ईमानदारी के साथ संसार की सेवा में अर्पित कर दें । जो कुछ करें, संसार के हित के लिये ही करें । केवल संसार के हित का ही चिन्तन करें, हित का ही भाव रखें, साथमें अपने आराम, मान-बड़ाई, सुख-सुविधा आदिकी इच्छा न रखें तो परमात्मा की प्राप्ति हो जायगी‒‘ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः (गीता १२ । ४) ।

 

दूसरों को सुख पहुँचाने की अपेक्षा भी किसी को दुःख न पहुँचाना बहुत ऊँची सेवा है । सुख पहुँचाने से सीमित सेवा होती है, पर दुःख न पहुँचाने से असीम सेवा होती है । भलाई करने से ऊपर से भलाई होती है, पर बुराई न करने से भीतर से भलाई अंकुरित होती है । बुराई का त्याग करने के लिये तीन बातों का पालन आवश्यक है‒(१) किसी को बुरा नहीं समझें (२) किसी का बुरा नहीं चाहें और (३) किसी का बुरा नहीं करें । इस प्रकार बुराई का सर्वथा त्याग करने से हमारी वास्तविक आवश्यकता की पूर्ति हो जायगी और मनुष्यजीवन सफल हो जायगा ।

 

नारायण ! नारायण !!

 

(शेष आगामी पोस्ट में )

------गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की सत्संग मुक्ताहारपुस्तकसे



1 टिप्पणी:

  1. 🙏🙏जय श्री हरि:!!🙏🙏
    नारायण नारायण नारायण नारायण 🙏

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