गुरुवार, 2 मार्च 2023

दस नामापराध (पोस्ट ०५)

|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||

‘नाम्न्यर्थवादभ्रमः’‒(७) नाममें अर्थवादका भ्रम है । यह महिमा बढ़ा-चढ़ाकर कही है; इतनी महिमा थोडी है नामकी ! नाममात्रसे कल्याण कैसे हो जायगा ? ऐसा भ्रम न करें; क्योंकि भगवान्‌ का नाम लेनेसे कल्याण हो जायगा । नाममें खुद भगवान् विराजमान हैं । मनुष्य नींद लेता है तो नाम लेते ही सुबोध होता है अर्थात् किसीको नींद आयी हुई है तो उसका नाम लेकर पुकारो तो वह नींदमें सुन लेगा । नींदमें सम्पूर्ण इन्द्रियाँ मनमें, मन बुद्धिमें और बुद्धि अविद्यामें लीन हुई रहती है‒ऐसी जगह भी नाममें विलक्षण शक्ति है । ‘शब्दशक्तेरचिन्त्यत्वात्’ शब्दमें अपार, असीम, अचिन्त्य शक्ति मानी है । नींदमें सोता हुआ जग जाय । अनादि कालसे सोया हुआ जीव सन्त-महात्माओंके वचनोंसे जग जाता है,उसको होश आ जाता है । जिस बेहोशीमें अनन्त जन्म बीत गये । लाखों-करोड़ों वर्ष बीत गये । ऐसे नींदमें सोता हुआ भी, शब्द में इतनी अलौकिक विलक्षण शक्ति है, जिससे वह जाग्रत् हो जाय, अविद्या मिट जाय, अज्ञान मिट जाय । ऐसे उपदेशसे विचित्र हो जाय आदमी ।

यह तो देखनेमें आता है । सत्संग सुननेसे आदमी में परिवर्तन आता है । उसके भावोंमें महान् परिवर्तन हो जाता है । पहले उसमें क्या-क्या इच्छाएँ थीं, उसकी क्या दशा थी,किधर वृत्ति थी, क्या काम करता था ? और अब क्या करता है ? इसका पता लग जायगा । इस वास्ते शब्दमें अचिन्त्य शक्ति है ।

नाम में अर्थवादकी कल्पना करना कि नामकी महिमा झूठी गा दी है, लोगोंकी रुचि करनेके लिये यह धोखा दिया है । थोड़ा ठंडे दिमागसे सोचो कि सन्त-महात्मा भी धोखा देंगे तो तुम्हारे कल्याणकी, हितकी बात कौन कहेगा ?
बड़े अच्छे-अच्छे महापुरुष हुए हैं और उन्होंने कहा है‒‘भैया ! भगवान्‌का नाम लो ।’ असम्भव सम्भव हो जाय । लोगोंने ऐसा करके देखा है । असम्भव बात भी सम्भव हो जाती है । जो नहीं होनेवाली है वह भी हो जाती है । जिनके ऐसी बीती है उम्रमें, उन लोगोंने कहा है । ऐसी असम्भव बात सम्भव हो जाय, न होनेवाली हो जाय । इसमें क्या आश्चर्य है ? क्योंकि ‘कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तुं समर्थ ईश्वरः’ ईश्वर करनेमें, न करनेमें, अन्यथा करनेमें समर्थ होता है । वह ईश्वर वशमें हो जाय अर्थात् भगवान् भगवन्नाम लेनेवालेके वशमें हो जाते हैं ।

नाम महाराज से क्या नहीं हो सकता ? ऐसा कुछ है ही नहीं, जो न हो सके अर्थात् सब कुछ हो सकता है । भगवान्‌ का नाम लेनेसे ऐसे लाभ होता है बड़ा भारी । नामसे बड़े-बड़े असाध्य रोग मिट गये हैं, बड़े-बड़े उपद्रव मिट गये हैं, भूत-प्रेत-पिशाच आदिके उपद्रव मिट गये हैं । भगवान्‌ का नाम लेनेवाले सन्तोंके दर्शनमात्रसे अनेक प्रेतोंका उद्धार हो गया । भगवान्‌का नाम लेनेवाले पुरुषोंके संगसे, उनकी कृपासे अनेक जीवोंका उद्धार हो गया है ।

सज्जनो ! आप विचार करें तो यह बात प्रत्यक्ष दीखेगी कि जिन देशोंमें सन्त-महात्मा घूमते हैं, जिन गाँवोंमें, जिन प्रान्तोंमें सन्त रहते हैं और जिन गाँवोंमें सन्तों ने भगवान्‌ के नामका प्रचार किया है, वे गाँव आज विलक्षण हैं दूसरे गाँवोंसे । जिन गाँवोंमें सौ-दो-सौ वर्षोंसे कोई सन्त नहीं गया है, वे गाँव ऐसे ही पड़े हैं अर्थात् वहांके लोगोंकी भूत-प्रेत-जैसी दशा है । भगवान्‌का नाम लेनेवाले पुरुष जहाँ घूमे हैं,पवित्रता आ गयी, विलक्षणता आ गयी, अलौकिकता आ गयी । वे गाँव सुधर गये, घर सुधर गये, वहाँके व्यक्ति सुधर गये,उनको होश आ गया । वे स्वयं भी कहते हैं, हम मामूली थे पर भगवान्‌ का नाम मिला, सन्त मिल गये तो हम मालामाल हो गये ।

१९९३ वि॰ सं॰ में हमलोग तीर्थयात्रामें गये थे तो काठियावाड़ में एक भाई मिला । उसने हम को पाँच-सात वर्षोंकी उम्र बतायी । अरे भाई ! तुम इतने बड़े दीखते हो, तो क्या बात है ? उस भाईने कहा‒मैं सात वर्षोंसे ही ‘कल्याण’ मासिक पत्रिका का ग्राहक हूँ । जबसे इधर रुचि हुई, तबसे ही मैं अपनेको मनुष्य मानता हूँ । पहले की उम्र को मैं मनुष्य मानता ही नहीं, मनुष्यके लायक काम नहीं किया । उद्दण्ड, उच्छृंखल होते रहे । तो बोलो, कितना विलक्षण लाभ होता है ? ‘तीर्थयात्रा-ट्रेन गीताप्रेस की है’‒ऐसा सुनते तो लोग परिक्रमा करते । जहाँ गाड़ी खड़ी रहती, वहाँके लोग कीर्तन करते और स्टेशनों-स्टेशनों पर कीर्तन होता कि आज तीर्थयात्राकी गाड़ी आनेवाली है ।
यह महिमा किस बातकी है ? यह सब भगवान्‌ को,भगवान्‌ के नामको लेकर है । आज भी हम गोस्वामीजीकी महिमा गाते हैं, रामायणजी की महिमा गाते हैं, तो क्या है ? भगवान्‌ का चरित्र है, भगवान्‌ का नाम है । गोस्वामीजी महाराज भी कहते हैं‒‘एहि महँ रघुयति नाम उदारा ।’ इसमें भगवान्‌ का नाम है जो कि वेद, पुराणका सार है । इस कारण रामायणकी इतनी महिमा है । भगवान्‌की महिमा,भगवान्‌ के चरित्र, भगवान्‌ के गुण होनेसे रामायणकी महिमा है । जिसका भगवान्‌ से सम्बन्ध जुड़ जाता है, वह विलक्षण हो जाता है । गंगाजी सबसे श्रेष्ठ क्यों हैं ? भगवान्‌ के चरणोंका जल है । भगवान्‌ के साथ सम्बन्ध है । इस वास्ते भगवान्‌ के नामकी महिमामें अर्थवादकी कल्पना करना गलत है ।

नारायण ! नारायण !!

(शेष आगामी पोस्ट में)
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “भगवन्नाम” पुस्तकसे


3 टिप्‍पणियां:

  1. कृपया वर्तमान सामाजिक व्यवस्था के सामयिक दोषों का संदर्भ लेकर शास्त्रों की आदर्शवादी परिस्थितियों को उद्धृत करते हुए विशुद्ध सरल भाषा में कुछ प्रसंग डालें। अति मेहरबानी होगी।

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  2. यथा रावण की सीता माता के प़ति मर्यादा एवं सुलोचना का पतिव्रत धर्म और विभीषण जी का राक्षसी व्यवस्था में सात्विकता बनाये रखना इत्यादि।
    धन्यवाद।
    जय श्री हरि।।

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