साध्यतत्त्व की एकरूपता
जैसे नेत्र तथा नेत्रों से दीखने वाला दृश्य‒दोनों सूर्य से प्रकाशित होते हैं, वैसे ही बहिःकरण, अन्तःकरण, विवेक आदि सब उसी परम प्रकाशक तत्त्व से प्रकाशित होते हैं‒‘तस्य भासा सर्वमिदं विभाति’ (श्वेताश्वतर॰ ६ । १४) । जो वास्तविक प्रकाश अथवा तत्त्व है, वही सम्पूर्ण दर्शनों का आधार है । जितने भी दार्शनिक हैं, प्रायः उन सबका तात्पर्य उसी तत्त्व को प्राप्त करने में है । दार्शनिकों की वर्णन-शैलियाँ तथा साधन-पद्धतियाँ तो अलग-अलग हैं, पर उनका तात्पर्य एक ही है । साधकों में रुचि, विश्वास और योग्यता की भिन्नता के कारण उनके साधनों में तो भेद हो जाते हैं, पर उनका साध्यतत्त्व वस्तुतः एक ही होता है ।
“नारायण अरु नगरके, रज्जब राह अनेक ।
भावे आवो किधरसे, आगे अस्थल एक ॥“
दिशाओं की भिन्नता के कारण नगर में जाने के अलग-अलग मार्ग होते हैं । नगर में कोई पूर्व से, कोई पश्रिम से, कोई उत्तर से और कोई दक्षिण से आता है; परन्तु अन्त में सब एक ही स्थान पर पहुँचते हैं । इसी प्रकार साधकों की स्थिति की भिन्नता के कारण साधन-मार्गोंमें भेद होने पर भी सब साधक अन्त में एक ही तत्त्व को प्राप्त होते हैं । इसीलिये संतों ने कहा है‒
“पहुँचे पहुँचे एक मत, अनपहुँचे मत और ।
संतदास घड़ी अरठकी, ढुरे एक ही ठौर ॥“
प्रत्येक मनुष्य की भोजन की रुचि में दूसरे से भिन्नता रहती है; परंतु ‘भूख’ और ‘तृप्ति’ सब की समान ही होती है अर्थात् अभाव और भाव सब के समान ही होते हैं । ऐसे ही मनुष्यों की वेश-भूषा, रहन-सहन, भाषा आदि में बहुत भेद रहते हैं; परंतु ‘रोना’ और ‘हँसना’ सब के समान ही होते हैं अर्थात् दुःख और सुख सब को समान ही होते हैं । ऐसा नहीं होता कि यह रोना या हँसना तो मारवाड़ी है, यह गुजराती है, यह बँगाली है आदि ! इसी प्रकार साधन-पद्धतियोमें भिन्नता रहने पर भी साध्य की ‘अप्राप्तिका दुःख’ और ‘प्राप्तिका आनन्द’ सब साधकों को समान ही होते हैं ।
वह परमात्मतत्त्व ही ब्रह्मारूप से सबको उत्पन्न करता है, विष्णुरूप से सब का पालन-पोषण करता है और रुद्ररूप से सबका संहार करता है‒‘भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च ॥’ (गीता १३ । १६) । वही तत्त्व अनेक अवतार लेकर, अनेक रूपों में लीला करता है । इस प्रकार अनेक रूपों से दीखने पर भी वह तत्त्व वस्तुतः एक ही रहता है और तत्त्व-दृष्टि से एक ही दीखता है । इस तत्त्वदृष्टि की प्राप्ति को ही दार्शनिकों ने मोक्ष, परमात्मप्राप्ति, भगवत्प्राप्ति, तत्त्वज्ञान आदि नामोंसे कहा है ।
नारायण ! नारायण !!
(शेष आगामी पोस्ट में )
ॐ श्री परमात्मने नमः
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जय श्री हरि 🌻🙏
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