गुरुवार, 27 जुलाई 2023

नारद गीता दूसरा अध्याय (पोस्ट 04)

 



शुकदेव को नारदजी का सदाचार और अध्यात्मविषयक उपदेश

 

सर्वे क्षयान्ता निचयाः पतनान्ताः समुच्छ्रयाः ।

संयोगा विप्रयोगान्ता मरणान्तं हि जीवितम् ॥ २० ॥

 

संग्रह का अन्त है विनाश । ऊँचे चढ़ने का अन्त है नीचे गिरना । संयोग का अन्त है वियोग और जीवन का अन्त है मरण ॥ २० ॥

 

अन्तो नास्ति पिपासायास्तुष्टिस्तु परमं सुखम्।

तस्मात् सन्तोषमेवेह धनं पश्यन्ति पण्डिताः ॥ २१ ॥

 

तृष्णा का कभी अन्त नहीं होता । सन्तोष ही परम सुख है, अतः पण्डितजन इस लोक में सन्तोष को ही उत्तम धन समझते हैं ॥ २१ ॥  

 

निमेषमात्रमपि हि वयो गच्छन्न तिष्ठति ।

स्वशरीरेष्वनित्येषु नित्यं किमनुचिन्तयेत् ॥ २२ ॥

 

आयु निरन्तर बीती जा रही है । वह पलभर भी ठहरती नहीं है। जब अपना शरीर ही अनित्य है, तब इस संसारकी किस वस्तुको नित्य समझा जाय ॥ २२ ॥

 

भूतेषु भावं सञ्चिन्त्य ये बुद्ध्वा मनसः परम् ।

न शोचन्ति गताध्वानः पश्यन्तः परमां गतिम् ॥ २३ ॥

 

जो मनुष्य सब प्राणियों के भीतर मन से परे परमात्मा की स्थिति जानकर उन्हीं का चिन्तन करते हैं, वे संसार - यात्रा समाप्त होने पर परमपद का साक्षात्कार करते हुए शोक के पार हो जाते हैं ॥ २३ ॥

 

सञ्चिन्वानकमेवैनं कामानामवितृप्तकम् ।

व्याघ्रः पशुमिवासाद्य मृत्युरादाय गच्छति ॥ २४ ॥

 

जैसे जंगल में नयी-नयी घास की खोज में विचरते हुए अतृप्त पशु को सहसा व्याघ्र आकर दबोच लेता है, उसी प्रकार भोगों की खोज में लगे हुए अतृप्त मनुष्यको मृत्यु उठा ले जाती है ॥ २४ ॥

 

तथाप्युपायं सम्पश्येद् दुःखस्य परिमोक्षणम् ।

अशोचन् नारभेच्चैव मुक्तश्चाव्यसनी भवेत् ॥ २५ ॥

 

तथापि सब को दुःखसे छूटने का उपाय अवश्य सोचना चाहिये । जो शोक छोड़कर साधन आरम्भ करता है और किसी व्यसन में आसक्त नहीं होता, वह निश्चय ही दु:खों से मुक्त हो जाता है ॥ २५ ॥

 

......शेष आगामी पोस्ट में

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित गीता-संग्रह पुस्तक (कोड 1958) से

 



2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌹🌼🍂जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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  2. 🌷💟🌹🥀जय श्री हरि:🙏🏼🙏🏼
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    हरि: शरणम् ही केवलम
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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