|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||
‘गुन निधान सो’ यह ‘नाम’ गुणोंका खजाना है, मानो ‘राम’ नाम लेनेसे कोई गुण बाकी नहीं रहता । बिना जाने ही उसमें सद्गुण, सदाचार अपने-आप आ जाते हैं ।‘राम’ नाम जपनेवाले जितने सन्त महात्मा हुए हैं । आप विचार करके देखो ! उनमें कितनी ऋद्धि-सिद्धि, कितनी अलौकिक विलक्षणता आ गयी थी !‘राम’ नाम जपमें अलौकिकता है, तब न उनमें आयी ? नहीं तो कहाँसे आती ?इसलिये यह ‘राम’ नाम गुणोंका खजाना है । यह सत्त्व, रज और तमसे रहित है और गुणोंके सहित भी है एवं व्यापक भी है । यहाँ इस प्रकार ‘राम’ नाम में ‘र’, ‘आ’ और ‘म’ इन तीन अक्षरोंकी महिमाका वर्णन हुआ और तीनोंकी महिमा कहकर उनकी विलक्षणता बतलायी । यहाँतक ‘राम’ नामके अवयवोंका एक प्रकरण हुआ । अब गोस्वामीजी ‘राम’ नामकी महिमा कहना प्रारम्भ करते हैं‒
महामन्त्रकी महिमा
महामंत्र जोइ जपत महेसू ।
कासीं मुकुति हेतु उपदेसू ॥
……………..(मानस, बालकाण्ड, दोहा १९ । ३)
यह ‘राम’ नाम महामन्त्र है, जिसे ‘महेश्वर’‒ भगवान् शंकर जपते हैं और उनके द्वारा यह ‘राम’ नाम-उपदेश काशीमें मुक्तिका कारण है । ‘र’, ‘आ’ और ‘म’‒इन तीन अक्षरोंके मिलनेसे यह ‘राम’ नाम तो हुआ ‘महामन्त्र’ और बाकी दूसरे सभी नाम हुए साधारण मन्त्र ।
सप्तकोट्यो महामन्त्राश्चित्तविभ्रमकारकाः ।
एक एव परो मन्त्रो ‘राम’ इत्यक्षरद्वयम् ॥
सात करोड़ मन्त्र हैं, वे चित्तको भ्रमित करनेवाले हैं । यह दो अक्षरोंवाला‘राम’ नाम परम मन्त्र है । यह सब मन्त्रोंमें श्रेष्ठ मन्त्र है । सब मन्त्र इसके अन्तर्गत आ जाते हैं । कोई भी मन्त्र बाहर नहीं रहता । सब शक्तियाँ इसके अन्तर्गत हैं ।
यह ‘राम’ नाम काशीमें मरनेवालोंकी मुक्तिका हेतु है । भगवान् शंकर मरनेवालोंके कानमें यह ‘राम’ नाम सुनाते हैं और इसको सुननेसे काशीमें उन जीवोंकी मुक्ति हो जाती है । एक सज्जन कह रहे थे कि काशीमें मरनेवालोंका दायाँ कान ऊँचा हो जाता है‒ऐसा मैंने देखा है । मानो मरते समय दायें कानमें भगवान् शंकर ‘राम’ नाम मन्त्र देते हैं । इस विषयमें सालगरामजीने भी कहा है‒
जग में जितेक जड़ जीव जाकी अन्त समय,
जम के जबर जोधा खबर लिये करे ।
काशीपति विश्वनाथ वाराणसी वासिन की,
फाँसी यम नाशन को शासन दिये करे ॥
मेरी प्रजा ह्वेके किम पे हैं काल दण्डत्रास,
सालग विचार महेश यही हिये करे ।
तारककी भनक पिनाकी यातें प्रानिन के,
प्रानके पयान समय कानमें किये करे ॥
जब प्राणोंका प्रयाण होता है तो उस समय भगवान् शंकर उस प्राणीके कानमें ‘राम’ नाम सुनाते हैं । क्यों सुनाते हैं ? वे यह विचार करते हैं कि भगवान्से विमुख जीवोंकी खबर यमराज लेते हैं, वे सबको दण्ड देते हैं; परन्तु मैं संसारभरका मालिक हूँ । लोग मुझे विश्वनाथ कहते हैं और मेरे रहते हुए मेरी इस काशीपुरीमें आकर यमराज दण्ड दे तो यह ठीक नहीं है । अरे भाई ! किसीको दण्ड या पुरस्कार देना तो मालिकका काम है । राजाकी राजधानीमें बाहरसे दूसरा आकर ऐसा काम करे तो राजाकी पोल निकलती है न ! सारे संसारमें नहीं तो कम-से-कम वाराणसीमें जहाँ मैं बैठा हूँ, यहाँ आकर यमराज दखल दे‒यह कैसे हो सकता है ।
राम ! राम !! राम !!!
(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “मानस में नाम-वन्दना” पुस्तकसे
Jay shree Ram
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