बुधवार, 27 मार्च 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गोलोकखण्ड) चौथा अध्याय (पोस्ट 01)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गोलोकखण्ड)

चौथा अध्याय  (पोस्ट 01)

 

नन्द आदि के लक्षण; गोपीयूथ का परिचय; श्रुति आदि के गोपीभाव की प्राप्ति में कारणभूत पूर्वप्राप्त वरदानों का विवरण

 

नन्दोपनन्दभवने श्रीदामा सुबलः सखा ।
स्तोककृष्णोऽर्जुनोंऽशश्च नवनन्दगृहे विधे ॥१॥
विशालार्षभतेजस्वी देवप्रस्थवरूथपाः ।
भविष्यन्ति सखायो मे व्रजे षड् वृषभानुषु ॥२॥


श्रीब्रह्मोवाच -
कस्य वै नन्दपदवी कस्य वै वृषभानुता ।
वद देवपते साक्षादुपनन्दस्य लक्षणम् ॥३॥


श्रीभगवानुवाच -
गाः पालयन्ति घोषेषु सदा गोवृत्तयोऽनिशम् ।
ते गोपाला मया प्रोक्तास्तेषां त्वं लक्षणं श्रृणु ॥४॥
नन्दःप्रोक्तः सगोपालैर्नवलक्षगवां पतिः ।
उपनन्दश्च कथितः पंचलक्षगवां पतिः ॥५॥
वृषभानुः स उक्तो यो दशलक्षगवां पतिः ।
गवां कोटिर्गृहे यस्य नन्दराजः स एवहि ॥६॥
कोट्यर्धं च गवां यस्य वृषभानुवरस्तु सः ।
एतादृशौ व्रजे द्वौ तु सुचन्द्रो द्रोण एवहि ॥७॥
सर्वलक्षणलक्ष्याढ्यौ गोपराजौ भविष्यतः ।
शतचन्द्राननानां च सुन्दरीणां सुवाससाम् ।
गोपीनां मद्‌व्रजे रम्ये शतयूथो भविष्यति ॥८॥


श्रीब्रह्मोवाच -
हे दीनबंधो हे देव जगत्कारणकारण ।
यूथस्य लक्षणं सर्वं तन्मे ब्रूहि परेश्वर ॥९॥


श्रीभगवानुवाच -
अर्बुदं दशकोटीनां मुनिभिः कथितं विधे ।
दशार्बुदं यत्र भवेत्सोऽपि यूथः प्रकथ्यते ॥१०॥
गोलोकवासिन्यः काश्चित्काश्चिद्वै द्वारपालिकाः ।
शृङ्गारप्रकराः काश्चित्काश्चिच्छस्योपकारकाः ॥११॥
पार्षदाख्यास्तथा काश्चिच्छ्रीवृन्दावनपालिकाः ।
गोवर्धननिवासिन्यः काश्चित्कुञ्जविधायिकाः ॥१२॥
मे निकुञ्जनिवासिन्यो भविष्यन्ति व्रजे मम ।
एवं च यमुनायूथो जाह्नवीयूथ एव च ॥१३॥
रमाया मधुमाधव्या विरजायास्तथैव च ।
ललिताया विशाखाया मायायूथो भविष्यति ॥१४॥
एवं हृष्टसखीनां च सखीनां किल षोडश ।
द्वात्रिंशच्च सखीनां च यूथा भाव्या व्रजे विधे ॥१५॥
श्रुतरूपा ऋषिरूपा मैथिलाः कोशलास्तथा ।
अयोध्यापुरवासिन्यो यत्र सीतापुलिन्दकाः ॥१६॥
यासां मया बरो दत्तो पूर्वे पुर्वे युगे युगे ।
तासां यूथा भविष्यन्ति गोपीनां मद्‍व्रजे शुभे ॥१७॥

भगवान् ने कहा- ब्रह्मन् ! 'सुबल' और 'श्रीदामा' नामके मेरे सखा नन्द तथा उपनन्दके घरपर जन्म धारण करेंगे। इसी प्रकार और भी मेरे सखा हैं, जिनके नाम 'स्तोककृष्ण', 'अर्जुन' एवं 'अंशु' आदि हैं, वे सभी नौ नन्दोंके यहाँ प्रकट होंगे। व्रजमण्डलमें जो छः वृषभानु हैं, उनके गृह में विशाल, ऋषभ, तेजस्वी, देवप्रस्थ और वरूथप नामके मेरे सखा अवतीर्ण होंगे ॥ १-२ ॥

श्रीब्रह्माजीने पूछा- देवेश्वर ! किसे 'नन्द' कहा जाता है और किसे 'उपनन्द' तथा 'वृषभानु' के क्या लक्षण हैं ? ॥ ३ ॥

श्रीभगवान् कहते हैं—जो गोशालाओं में सदा गौओंका पालन करते रहते हैं एवं गो-सेवा ही जिनकी जीविका है, उन्हें मैंने 'गोपाल' संज्ञा दी है। अब तुम उनके लक्षण सुनो। गोपालोंके साथ नौ लाख गायोंके स्वामीको 'नन्द' कहा जाता है। पाँच लाख गौओंका स्वामी 'उपनन्द' पदको प्राप्त करता है । 'वृषभानु' नाम उसका पड़ता है, जिसके अधिकारमें दस लाख गौएँ रहती हैं, ऐसे ही जिसके यहाँ एक करोड़ गौओंकी रक्षा होती है, वह 'नन्दराज' कहलाता है। पचास लाख गौओंके अध्यक्षकी 'वृषभानुवर' संज्ञा है । 'सुचन्द्र' और 'द्रोण' – ये दो ही व्रजमें इस प्रकारके सम्पूर्ण लक्षणोंसे सम्पन्न गोपराज बनेंगे और मेरे दिव्य व्रजमें सुन्दर वस्त्र धारण करनेवाली शतचन्द्रानना गोप- सुन्दरियोंके सौ यूथ होंगे ॥ ४ – ८ ॥

श्रीब्रह्माजी ने कहा भगवन् ! आप दीनजनों के बन्धु और जगत् के कारण (प्रकृति) के भी कारण हैं 1 प्रभो ! अब आप मेरे समक्ष यूथके सम्पूर्ण लक्षणोंका वर्णन कीजिये ॥ ९ ॥

श्रीभगवान् बोले—–ब्रह्माजी ! मुनियोंने दस कोटिको एक 'अर्बुद' कहा है। जहाँ दस अर्बुद होते हैं । उसे 'यूथ' कहा जाता है । यहाँ की गोपियों में कुछ गोलोकवासिनी हैं, कुछ द्वारपालिका हैं, कुछ शृङ्गार-साधनों की व्यवस्था करनेवाली हैं और कुछ शय्या सँवारने में संलग्न रहती हैं। कई तो पार्षदकोटि में आती और कुछ गोपियाँ श्रीवृन्दावन की देख-रेख किया करती हैं। कुछ गोपियों का गोवर्धन गिरिपर निवास है । कई गोपियाँ कुञ्जवन को सजाती-सँवारती हैं तथा बहुतेरी गोपियाँ मेरे निकुञ्ज में रहती हैं। इन सब को मेरे व्रज में पधारना होगा। ऐसे ही यमुना-गङ्गाके भी यूथ हैं। इसी प्रकार रमा, मधुमाधवी, विरजा, ललिता, विशाखा एवं मायाके यूथ होंगे। ब्रह्माजी ! इसी प्रकार मेरे व्रजमें आठ, सोलह और बत्तीस सखियोंके भी यूथ होंगे। पूर्वके अनेक युगोंमें जो श्रुतियाँ, मुनियोंकी पत्नियाँ, अयोध्याकी महिलाएँ, यज्ञमें स्थापित की हुई सीता, जनकपुर एवं कोसलदेशकी निवासिनी सुन्दरियाँ तथा पुलिन्दकन्याएँ थीं तथा जिनको मैं पूर्ववर्ती युग- युग में वर दे चुका हूँ, वे सब मेरे पुण्यमय व्रजमें गोपी- रूप में पधारेंगी और उनके भी यूथ होंगे ॥ १०-१७॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से

 



3 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ कृष्णायवासुदेवाय हरये परमात्मने प्रणत क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः 🍂💖🌹
    हे गोविंद हे गोपाल हे करुणामय दीन दयाल 🌺🌹🙏🙏
    जय श्री राधे गोविंद 🙏🥀🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. जय श्री राधे कृष्णा 🙏🌹

    जवाब देंहटाएं
  3. जय श्री राम जय श्री कृष्ण

    जवाब देंहटाएं

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०९) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन देव...