शनिवार, 16 मार्च 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध - आठवां अध्याय..(पोस्ट..०७)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ 

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध--आठवाँ अध्याय..(पोस्ट ०७)

गर्भ में परीक्षित्‌ की रक्षा, कुन्ती के द्वारा भगवान्‌ की स्तुति और युधिष्ठिर का शोक

न वेद कश्चिद् भगवंश्चिकीर्षितं
     तवेहमानस्य नृणां विडम्बनम् ।
न यस्य कश्चिद् दयितोऽस्ति कर्हिचिद्
     द्वेष्यश्च यस्मिन्विषमा मतिर्नृणाम् ॥ २९ ॥
जन्म कर्म च विश्वात्मन् अजस्याकर्तुरात्मनः ।
तिर्यङ् नृषिषु यादःसु तद् अत्यन्तविडम्बनम् ॥ ३० ॥

भगवन् ! आप जब मनुष्योंकी-सी लीला करते हैं, तब आप क्या करना चाहते हैं—यह कोई नहीं जानता। आपका कभी कोई न प्रिय है और न अप्रिय। आपके सम्बन्ध में लोगोंकी बुद्धि ही विषम हुआ करती है ॥ २९ ॥ आप विश्वके आत्मा हैं, विश्वरूप हैं। न आप जन्म लेते हैं और न कर्म ही करते हैं। फिर भी पशु-पक्षी, मनुष्य, ऋषि, जलचर आदिमें आप जन्म लेते हैं और उन योनियोंके अनुरूप दिव्य कर्म भी करते हैं। यह आपकी लीला ही तो है ॥ ३० ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से


2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌹💟🥀🌾जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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