रविवार, 7 अप्रैल 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध दसवां अध्याय..(पोस्ट..०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ 

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध--दसवाँ अध्याय..(पोस्ट ०२)

श्रीकृष्णका द्वारका-गमन

उषित्वा हास्तिनपुरे मासान् कतिपयान् हरिः ।
सुहृदां च विशोकाय स्वसुश्च प्रियकाम्यया ॥ ७ ॥
आमंत्र्य चाभ्यनुज्ञातः परिष्वज्याभिवाद्य तम् ।
आरुरोह रथं कैश्चित् परिष्वक्तोऽभिवादितः ॥ ८ ॥
सुभद्रा द्रौपदी कुन्ती विराटतनया तथा ।
गान्धारी धृतराष्ट्रश्च युयुत्सुः गौतमो यमौ ॥ ९ ॥
वृकोदरश्च धौम्यश्च स्त्रियो मत्स्यसुतादयः ।
न सेहिरे विमुह्यन्तो विरहं शार्ङ्गधन्वनः ॥ १० ॥
सत्सङ्गात् मुक्तदुःसङ्गो हातुं नोत्सहते बुधः ।
कीर्त्यमानं यशो यस्य सकृत् आकर्ण्य रोचनम् ॥ ११ ॥
तस्मिन् न्यस्तधियः पार्थाः सहेरन् विरहं कथम् ।
दर्शनस्पर्शसंलाप शयनासन भोजनैः ॥ १२ ॥
सर्वे तेऽनिमिषैः अक्षैः तं अनु द्रुतचेतसः ।
वीक्षन्तः स्नेहसम्बद्धा विचेलुस्तत्र तत्र ह ॥ १३ ॥

अपने बन्धुओंका शोक मिटानेके लिये और अपनी बहिन सुभद्राकी प्रसन्नताके लिये भगवान्‌ श्रीकृष्ण कई महीनोंतक हस्तिनापुरमें ही रहे ॥ ७ ॥ फिर जब उन्होंने राजा युधिष्ठिरसे द्वारका जानेकी अनुमति माँगी, तब राजाने उन्हें अपने हृदयसे लगाकर स्वीकृति दे दी। भगवान्‌ उनको प्रणाम करके रथपर सवार हुए। कुछ लोगों (समान उम्रवालों) ने उनका आलिङ्गन किया और कुछ (छोटी उम्र- वालों) ने प्रणाम ॥ ८ ॥ उस समय सुभद्रा, द्रौपदी, कुन्ती, उत्तरा, गान्धारी, धृतराष्ट्र, युयुत्सु, कृपाचार्य, नकुल, सहदेव, भीमसेन, धौम्य और सत्यवती आदि सब मूर्छित-से हो गये। वे शार्ङ्गपाणि श्रीकृष्ण का विरह नहीं सह सके ॥ ९-१० ॥ भगवद्भक्त सत्पुरुषोंके सङ्गसे जिसका दु:सङ्ग छूट गया है, वह विचारशील पुरुष भगवान्‌के मधुर-मनोहर सुयशको एक बार भी सुन लेनेपर फिर उसे छोडऩेकी कल्पना भी नहीं करता। उन्हीं भगवान्‌के दर्शन तथा स्पर्शसे, उनके साथ आलाप करनेसे तथा साथ-ही-साथ सोने, उठने-बैठने और भोजन करनेसे जिनका सम्पूर्ण हृदय उन्हें समर्पित हो चुका था, वे पाण्डव भला, उनका विरह कैसे सह सकते थे ॥ ११-१२ ॥ उनका चित्त द्रवित हो रहा था, वे सब निर्निमेष नेत्रों से भगवान्‌ को देखते हुए स्नेह-बन्धनसे बँधकर जहाँ-तहाँ दौड़ रहे थे ॥ १३ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से


2 टिप्‍पणियां:

  1. 💟🌺🌹🥀जय श्रीकृष्ण🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    हे द्वारकानाथ हे गोविंद हे जगतपति हे नाथ हे माधव
    नारायण नारायण नारायण नारायण नारायण

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