सोमवार, 30 सितंबर 2024

श्रीगर्ग-संहिता (माधुर्यखण्ड) पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट 01)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(माधुर्यखण्ड)

पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट 01)

 

अयोध्यावासिनी गोपियों के आख्यान के प्रसङ्ग में राजा विमल की संतान के लिये चिन्ता तथा महामुनि याज्ञवल्क्य द्वारा उन्हें बहुत-सी पुत्री होने का विश्वास दिलाना

 

श्रीनारद उवाच -
अयोध्यावासिनीनां तु गोपीनां वर्णनं शृणु ।
 चतुष्पदार्थदं साक्षात्कृष्णप्राप्तिकरं परम् ॥ १ ॥
 सिन्धुदेशेषु नगरी चंपका नाम मैथिल ।
 बभूव तस्यां विमलो राजा धर्मपरायणः ॥ २ ॥
 कुवेर इव कोशाढ्यो मनस्वी मृगराडिव ।
 विष्णुभक्तः प्रशांतात्मा प्रह्लाद इव मूर्तिमान् ॥ ३ ॥
 भार्याणां षट्सहस्राणि बभूवुस्तस्य भूपतेः ।
 रूपवत्यः कंजनेत्रा वंध्यात्वं ताः समागताः ॥ ४ ॥
 अपत्यं केन पुण्येन भूयान् मेऽत्र शुभं नृप ।
 एवं चिन्तयतस्तस्य बहवो वत्सरा गताः ॥ ५ ॥
 एकदा याज्ञवल्क्यस्तु मुनीन्द्रस्तमुपागतः ।
 तं नत्वाभ्यर्च विधिवन्नृपस्तत्संमुखे स्थितः ॥ ६ ॥
 चिंताकुलं नृपं वीक्ष्य याज्ञवल्क्यो महामुनिः ।
 सर्वज्ञः सर्वविच्छान्तः प्रत्युवाच नृपोत्तमम् ॥ ७ ॥


 श्रीयाज्ञवल्क्य उवाच -
राजन् कृशोऽसि कस्मात्त्वं का चिंता ते हृदि स्थिता ।
 सप्रस्वगेषु कुशलं दृश्यते सांप्रतं तव ॥ ८ ॥


 विमल उवाच -
ब्रह्मंस्त्वं किं न जानासि तपसा दिव्यचक्षुषा ।
 तथाऽप्यहं वदिष्यामि भवतो वाक्यगौरवात् ॥ ९ ॥
 आनपत्येन दुःखेन व्याप्तोऽहं मुनिसत्तम ।
 किं करोमि तपो दानं वद येन भवेत्प्रजा ॥ १० ॥


 श्रीनारद उवाच -
इति श्रुत्वा याज्ञवल्क्यो ध्यानस्तिमितलोचनः ।
 दीर्घं दध्यौ मुनिश्रेष्ठो भूतं भव्यं विचिंतयन् ॥ ११ ॥

 

श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! अब अयोध्या- वासिनी गोपियोंका वर्णन सुनो, जो चारों पदार्थोंको देनेवाला तथा साक्षात् श्रीकृष्णकी प्राप्ति करानेवाला सर्वोत्कृष्ट साधन है ॥ १ ॥

मिथिलेश्वर ! सिन्धुदेश में चम्पका नाम से प्रसिद्ध एक नगरी थी, जिसमें धर्मपरायण विमल नामक राजा हुए थे। वे कुबेरके समान कोष से सम्पन्न तथा सिंह के समान मनस्वी थे। वे भगवान् विष्णुके भक्त और प्रशान्तचित्त महात्मा थे। वे अपनी अविचल भक्तिके कारण मूर्तिमान् प्रह्लाद से प्रतीत होते थे । उन भूपालके  छः हजार रानियाँ थीं। वे सब की सब सुन्दर रूप- वाली तथा कमलनयनी थीं, परंतु भाग्यवश वे वन्ध्या हो गयीं। राजन् ! 'मुझे किस पुण्यसे उत्तम संतानकी प्राप्ति होगी ?' - ऐसा विचार करते हुए राजा विमलके बहुत वर्ष व्यतीत हो गये ॥ २-५ ॥

एक दिन उनके यहाँ मुनिवर याज्ञवल्क्य पधारे । राजा ने उनको प्रणाम करके उनका विधिवत् पूजन किया और फिर उनके सामने वे विनीतभाव से खड़े हो गये ॥

नृपतिशिरोमणि राजा को चिन्ता से आकुल देख सर्वज्ञ, सर्ववित् तथा शान्तस्वरूप महामुनि याज्ञवल्क्यने उनसे पूछा-- ।। ७ ।।

याज्ञवल्क्य बोले- राजन् ! तुम दुर्बल क्यों हो गये हो ? तुम्हारे हृदयमें कौन-सी चिन्ता खड़ी हो गयी है ? इस समय तुम्हारे राज्यके सातों अङ्गों में तो कुशल- मङ्गल ही दिखायी देता है ? ॥ ८ ॥

विमल ने कहा- -ब्रह्मन् ! आप अपनी तपस्या एवं दिव्यदृष्टि से क्या नहीं जानते हैं ? तथापि आपकी आज्ञाका गौरव मानकर मैं अपना कष्ट बता रहा हूँ । मुनिश्रेष्ठ ! मैं संतान हीनता के दुःख से चिन्तित हूँ। कौन-सा तप और दान करूँ, जिससे मुझे संतान की प्राप्ति हो ।। ९-१० ॥

श्रीनारदजी कहते हैं- विमलकी यह बात सुनकर याज्ञवल्क्यमुनिके नेत्र ध्यानमें स्थित हो गये। वे मुनिश्रेष्ठ भूत और वर्तमानका चिन्तन करते हुए दीर्घकालतक ध्यानमें मग्न रहे ॥ ११ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से



1 टिप्पणी:

  1. 🥀💖🌹जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव
    जय श्री राधे कृष्ण 🙏🙏

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