॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय स्कन्ध- नवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)
ब्रह्माजी का भगवद्धामदर्शन और भगवान्
के द्वारा उन्हें चतु:श्लोकी भागवतका उपदेश
तद्दर्शनाह्लादपरिप्लुतान्तरो
हृष्यत्तनुः प्रेमभराश्रुलोचनः ।
ननाम पादाम्बुजमस्य विश्वसृग्
यत् पारमहंस्येन पथाधिगम्यते ॥ १७ ॥
तं प्रीयमाणं समुपस्थितं कविं
प्रजाविसर्गे निजशासनार्हणम् ।
बभाष ईषत्स्मितशोचिषा गिरा
प्रियः प्रियं प्रीतमनाः करे स्पृशन् ॥ १८ ॥
उनका (भगवान् लक्ष्मीपति का) दर्शन करते ही ब्रह्माजी का हृदय आनन्द के उद्रेक से लबालब भर गया। शरीर पुलकित हो उठा, नेत्रों में प्रेमाश्रु छलक आये। ब्रह्माजी ने भगवान् के उन चरणकमलों में, जो परमहंसों के निवृत्तिमार्ग से प्राप्त हो सकते हैं, सिर झुकाकर प्रणाम किया ॥ १७ ॥ ब्रह्माजी के प्यारे भगवान् अपने प्रिय ब्रह्मा को प्रेम और दर्शन के आनन्द में निमग्न, शरणागत तथा प्रजा-सृष्टि के लिये आदेश देने के योग्य देखकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने ब्रह्माजी से हाथ मिलाया तथा मन्द मुसकानसे अलंकृत वाणीमें कहा— ॥ १८ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💟🥀🌺जय श्रीहरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण