॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
जय-विजय को सनकादि का शाप
ये त्वानन्येन भावेन भावयन्त्यात्मभावनम् ।
आत्मनि प्रोतभुवनं परं सदसदात्मकम् ॥ ६ ॥
तेषां सुपक्वयोगानां जितश्वासेन्द्रियात्मनाम् ।
लब्धयुष्मत् प्रसादानां न कुतश्चित्पराभवः ॥ ७ ॥
यस्य वाचा प्रजाः सर्वा गावस्तन्त्येव यन्त्रिताः ।
हरन्ति बलिमायत्ताः तस्मै मुख्याय ते नमः ॥ ८ ॥
स त्वं विधत्स्व शं भूमन् तमसा लुप्तकर्मणाम् ।
अदभ्रदयया दृष्ट्या आपन्नानर्हसीक्षितुम् ॥ ९ ॥
एष देव दितेर्गर्भ ओजः काश्यपमर्पितम् ।
दिशस्तिमिरयन् सर्वा वर्धतेऽग्निरिवैधसि ॥ १० ॥
(देवता ब्रह्माजी से कहरहे हैं) आप में सम्पूर्ण भुवन स्थित हैं, कार्य-कारणरूप सारा प्रपञ्च आपका शरीर है; किन्तु वास्तव में आप इससे परे हैं । जो समस्त जीवों के उत्पत्तिस्थान आपका अनन्य भाव से ध्यान करते हैं, उन सिद्ध योगियों का किसी प्रकार भी ह्रास नहीं हो सकता; क्योंकि वे आपके कृपाकटाक्ष से कृतकृत्य हो जाते हैं तथा प्राण, इन्द्रिय और मनको जीत लेनेके कारण उनका योग भी परिपक्व हो जाता है ॥ ६-७ ॥ रस्सीसे बँधे हुए बैलों की भाँति आपकी वेदवाणी से जकड़ी हुई सारी प्रजा आपकी अधीनता में नियमपूर्वक कर्मानुष्ठान करके आपको बलि समर्पित करती है। आप सबके नियन्ता मुख्य प्राण हैं, हम आपको नमस्कार करते हैं ॥ ८ ॥ भूमन् ! इस अन्धकार के कारण दिन-रात का विभाग अस्पष्ट हो जाने से लोकों के सारे कर्म लुप्त होते जा रहे हैं, जिससे वे दुखी हो रहे हैं; उनका कल्याण कीजिये और हम शरणागतों की ओर अपनी अपार दयादृष्टि से निहारिये ॥ ९ ॥ देव ! आग जिस प्रकार र्ईंधनमें पडक़र बढ़ती रहती है, उसी प्रकार कश्यपजीके वीर्यसे स्थापित हुआ यह दिति का गर्भ सारी दिशाओं को अन्धकारमय करता हुआ क्रमश: बढ़ रहा है ॥ १० ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💟🥀जय श्रीहरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!