॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)
जय-विजय को सनकादि का शाप
यन्न व्रजन्त्यघभिदो रचनानुवादात् ।
श्रृण्वन्ति येऽन्यविषयाः कुकथा मतिघ्नीः ।
यास्तु श्रुता हतभगैर्नृभिरात्तसारान् ।
तांस्तान् क्षिपन्त्यशरणेषु तमःसु हन्त ॥ २३ ॥
येऽभ्यर्थितामपि च नो नृगतिं प्रपन्ना ।
ज्ञानं च तत्त्वविषयं सहधर्मं यत्र ।
नाराधनं भगवतो वितरन्त्यमुष्य ।
सम्मोहिता विततया बत मायया ते ॥ २४ ॥
जो लोग भगवान् की पापापहारिणी लीलाकथाओं को छोडक़र बुद्धि को नष्ट करनेवाली अर्थ- कामसम्बन्धिनी अन्य निन्दित कथाएँ सुनते हैं, वे उस वैकुण्ठलोक में नहीं जा सकते। हाय ! जब वे अभागे लोग इन सारहीन बातों को सुनते हैं, तब ये उनके पुण्यों को नष्टकर उन्हें आश्रयहीन घोर नरकों में डाल देती हैं ॥ २३ ॥ अहा ! इस मनुष्ययोनि की बड़ी महिमा है, हम देवतालोग भी इसकी चाह करते हैं। इसीमें तत्त्वज्ञान और धर्मकी भी प्राप्ति हो सकती है। इसे पाकर भी जो लोग भगवान् की आराधना नहीं करते, वे वास्तवमें उनकी सर्वत्र फैली हुई मायासे ही मोहित हैं ॥ २४ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
🌹💖🥀ॐश्रीपरमात्मने नमः
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
नारायण नारायण नारायण नारायण