रविवार, 11 मई 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - तेईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - तेईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)

कर्दम और देवहूतिका विहार

यदा सस्मार ऋषभं ऋषीणां दयितं पतिम् ।
तत्र चास्ते सह स्त्रीभिः यत्रास्ते स प्रजापतिः ॥ ३४ ॥
भर्तुः पुरस्तादात्मानं स्त्रीसहस्रवृतं तदा ।
निशाम्य तद्योगगतिं संशयं प्रत्यपद्यत ॥ ३५ ॥
स तां कृतमलस्नानां विभ्राजन्तीमपूर्ववत् ।
आत्मनो बिभ्रतीं रूपं संवीतरुचिरस्तनीम् ॥ ३६ ॥
विद्याधरीसहस्रेण सेव्यमानां सुवाससम् ।
जातभावो विमानं तद् आरोहयद् अमित्रहन् ॥ ३७ ॥
तस्मिन् अलुप्तमहिमा प्रिययानुरक्तो
     विद्याधरीभिरुपचीर्णवपुर्विमाने ।
बभ्राज उत्कचकुमुद्गरणवानपीच्यः
     ताराभिरावृत इव उडुपतिः नभःस्थः ॥ ३८ ॥
तेनाष्टलोकपविहारकुलाचलेन्द्र
     द्रोणीष्वनङ्गसखमारुतसौभगासु ।
सिद्धैर्नुतो द्युधुनिपातशिवस्वनासु
     रेमे चिरं धनदवल्ललनावरूथी ॥ ३९ ॥
वैश्रम्भके सुरसने नन्दने पुष्पभद्रके ।
मानसे चैत्ररथ्ये च स रेमे रामया रतः ॥ ४० ॥

विदुरजी ! जब देवहूतिने अपने प्रिय पतिदेवका स्मरण किया, तो अपनेको सहेलियोंके सहित वहीं पाया, जहाँ प्रजापति कर्दम जी विराजमान थे ॥ ३४ ॥ उस समय अपने को सहस्रों स्त्रियों के सहित अपने प्राणनाथ के सामने देख और इसे उनके योग का प्रभाव समझकर देवहूति को बड़ा विस्मय हुआ ॥ ३५ ॥
शत्रुविजयी विदुर ! जब कर्दमजीने देखा कि देवहूतिका शरीर स्नान करनेसे अत्यन्त निर्मल हो गया है, और विवाहकालसे पूर्व उसका जैसा रूप था, उसी रूपको पाकर वह अपूर्व शोभासे सम्पन्न हो गयी है, उसका सुन्दर वक्ष:स्थल चोलीसे ढका हुआ है, हजारों विद्याधरियाँ उसकी सेवामें लगी हुई हैं तथा उसके शरीरपर बढिय़ा-बढिय़ा वस्त्र शोभा पा रहे हैं, तब उन्होंने बड़े प्रेमसे उसे विमानपर चढ़ाया ॥ ३६-३७ ॥ उस समय अपनी प्रियाके प्रति अनुरक्त होनेपर भी कर्दमजीकी महिमा (मन और इन्द्रियोंपर प्रभुता) कम नहीं हुई। विद्याधरियाँ उनके शरीरकी सेवा कर रही थीं। खिले हुए कुमुदके फूलोंसे सृंगार करके अत्यन्त सुन्दर बने हुए वे विमानपर इस प्रकार शोभा पा रहे थे, मानो आकाशमें तारागणसे घिरे हुए चन्द्रदेव विराजमान हों ॥ ३८ ॥ उस विमानपर निवासकर उन्होंने दीर्घकालतक कुबेरजीके समान मेरु पर्वतकी घाटियोंमें विहार किया। ये घाटियाँ आठों लोकपालों- की विहारभूमि हैं। इनमें कामदेवको बढ़ानेवाली शीतल, मन्द, सुगन्ध वायु चलकर इनकी कमनीय शोभाका विस्तार करती है तथा श्रीगङ्गाजीके स्वर्गलोकसे गिरनेकी मङ्गलमय ध्वनि निरन्तर गूँजती रहती है। उस समय भी दिव्य विद्याधरियोंका समुदाय उनकी सेवामें उपस्थित था और सिद्धगण वन्दना किया करते थे ॥ ३९ ॥ इसी प्रकार प्राणप्रिया देवहूतिके साथ उन्होंने(कर्दमजी ने) वैश्रम्भक, सुरसन, नन्दन, पुष्पभद्र और चैत्ररथ आदि अनेकों देवोद्यानों तथा मानस सरोवरमें अनुरागपूर्वक विहार किया ॥ ४० ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌸🌿🌺ॐश्रीपरमात्मने नमः
    नारायण नारायण नारायण नारायण श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव: !!

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